“सावन”

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सावन का महीना आया,
बारिश का पानी लाया,
सूखी सी पड़ी धरती पर,
नव जीवन देखो आया।
जो सूखे पड़े थे नाले,
पानी ने तर कर डाले,
जो बन्द पड़े थे नाले,
वर्षा ने खोल डाले।
सावन माह क्या आया,
चेहरों पे रौनक लाया।
बेहाल हुए गर्मी से जो,
चैन अब उनको आया।
रेगिस्तान के जो  इलाके,
जहां पानी कभी ना झांके,
बारिश ने कहर मचाया,
पानी बाढ़ रूप बन आया।
कई पुल नदियों पे बनाये,
बारिश में टिक न वे पाए,
हेराफेरी उजागर हो जाए,
सब की पोल खुल जाए।
जब वर्षा कहर बरसाए,
घरों में पानी घुसता जाए,
सब सामान नष्ट हो जाए,
कई जिंदगियां मिट जाएं।
जिन्होने घर पक्के बनाए,
बाढ़ के वेग को सह पाएं,
जो कच्चे घरों को बनाएं,
बाढ़ से घर उनके ढह जाएं
जब मनुष्य जंगल कटवाएं,
बाढ़ आमंत्रित करते आएं,
करें छेड़ छाड़ प्रकृति से,
फटें बादल वो कहर ढाएं।
सावन का मास सुहाना,
घरों में स्वादिष्ट बने खाना,
देख खीर, पूरे ओर पकोड़े,
मुंह में पानी का भर जाना।
वर्षा की ठंडी पड़ें फुहारें,
लगे हमको कोई पुकारे,
जो चले गए  दुनिया से,
जीएं हम यादों के सहारे।
सावन तूं जब जब आए,
बिछड़ों की याद सताए,
आंखों से बरसे पानी,
तूं गरजत बरसत जाए।
-बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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