श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ का आयोजन

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1976
चंडीगढ़
2 मई 2017
दिव्या आज़ाद
बहुत कर्म कर लेना जीवन की सार्थक ता नही है क्योंकि बहुत कर्म करने के बाद भी जब तक तत्वज्ञान नही होता तब तक जन्म-मरण चलता ही रहेगा इसलिये जीवन का परम् लक्ष्य उस परम् तत्व को जानना है क्योंकि उस परम तत्व को न जाने बिना जन्म मरण की यात्रा समाप्त नही होगी। यह प्रवचन सेक्टर 37 सी स्थित भगवान परशुराम भवन में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ के दौरान कथा व्यास आचार्य कैलाश प्रसाद जी ने श्रद्धालुओं को दिया।
कथा व्यास आचार्य कैलाश प्रसाद जी ने श्रद्धालुओं को श्री वेद व्यास जी और महाऋषि नारद जी के संवाद को सुनाया जिसमें महाऋषि नारद जी ने श्री वेद व्यास जी को भगवान की लीलाओं के वर्णनों का गुणानुवाद करने का संकेत किया जिससे की श्री वेद व्यास जी के द्वारा श्रीमद् भागवत महापुराण की रचना हुई। जिसमें कि 18  हजार श्लोक 335 अध्याय तथा 12 स्कन्द हैं। उन्होंने बताया कि  जिस समय समीक ऋषि के पुत्र के द्वारा संम्राट परीक्षित को सप्तम् दिवस मरने का श्राप मिला तो उसी समय श्रीमद् भागवत महापुराण पावन परम् हंसों की संहिता का श्री परीक्षित को श्रीसुकदेव भगवान ने रसपान करवाया। जिससे उन्हें मृत्यु का भय समाप्त हो गया। कथा व्यास आचार्य कैलाश ने बताया कि श्रीमद् भागवत महापुराण का श्रवण मनुष्य को जन्म मरण के बंधन से मुक्ति दिलवा देता है।
इस दौरान कथा व्यास द्वारा सुंदर भजन राधे राधे जपा करों कृष्ण नाम रस पिया करों.. .. .. आदि जैसे कई सुंदर भजन भी गाये जिस पर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो झूम उठे।
बह्मचारी स्वामी निज्यानंद  जी महाराज 3 मई शहर में: भगवान परशुराम भवन स्थित मंदिर के पुजारी पं देवी प्रसाद पैन्यूली ने जानकारी देते हुए बताया कि मध्यप्रदेश से आये जगत्गुरू शंकराचार्य के परम् शिष्य बह्मचारी स्वामी निज्यानंद  जी महाराज 3 मई को कथा स्थल में अपने अमुल्य प्रवचन उपस्थित श्रद्धालुओं को देगें।

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