“पीड़ित का हाथ पकड़ना”, “पैंट की ज़िप खोलना” यौन उत्पीड़न की परिभाषा में नहीं: बॉम्बे हाई कोर्ट जज

बॉम्बे हाई कोर्ट जज ने अन्य POCSO दोषी की सजा को रद्द किया, 1 हफ्ते में तीसरा विवादित फैंसला

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मुंबई
30 जनवरी 2021
दिव्या आज़ाद

बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच ने गुरूवार को कहा कि इस अदालत की राय में “पीड़ित (महिला) का हाथ पकड़ना” और “पैंट की जिप खोलना” यौन उत्पीड़न की परिभाषा में नहीं आता है। यह देखते हुए प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफन्सेस एक्ट (POCSO) के तहत एक आदमी की सज़ा को खारिज कर दिया।

12 फरवरी, 2018 को, नाबालिग की मां ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि एक दिन पहले उसने अपने घर में एक मजदूर लिबास कुजूर को देखा था, जिसने उसकी पांच वर्षीय बच्ची से छेड़छाड़ की थी। अगले दिन उसने उसे अपनी बड़ी बेटी का हाथ पकड़ते हुए देखा तो वह चिल्लाने लगी, पड़ोसियों के आते ही आरोपी भाग गया।

नाबालिग ने बाद में अपनी मां को बताया कि उसने अपनी पैंट से लिंग बाहर निकला और उसे सोने के लिए बिस्तर पर आने को कहा। मां ने भी कुजूर की पैंट की ज़िप खुली देखी थी। उसे धारा 354A (1) (i), 448 , सेक्शन 8, 9 (m), 10, 11 (i), 12 के तहत आरोपित और दोषी ठहराया गया था।

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला कुजूर द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने 5 अक्टूबर, 2020 को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई पांच साल की सजा चुनौती दी थी।

उच्च न्यायालय ने 15 जनवरी को पारित नौ पन्नों के आदेश में कहा, “POCSO अधिनियम की धारा 8, 10 और 12 के तहत अपराध के लिए अपीलार्थी / अभियुक्त की सजा को रद्द कर दिया जाता है और अलग रखा जाता है। आईपीसी की धारा 448 और 354-ए (1) (i) के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्त की सजा बरकरार है। “न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाया।

इससे पहले 19 जनवरी को, न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने POCSO अधिनियम के तहत आरोपित एक व्यक्ति को बरी कर दिया था और फिर से उसे आईपीसी के मामूली अपराध के तहत दोषी ठहराया क्यूंकि “There is no direct physical contact i.e skin-to-skin with sexual intent without penetration”

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस आदेश पर रोक लगा दी है।

जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला को बॉम्बे हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सहमति ली वापस

जस्टिस गनेदीवाला ने तीन अलग-अलग मामलों में POCSO एक्ट के तहत तीन दोषियों को एक सप्ताह के भीतर बरी कर दिया है। यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत आरोपी व्यक्तियों को बरी करने वाले विवादास्पद निर्णय को देखते हुए जस्टिस पुष्पा वी गनेदीवाला को बॉम्बे हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अपनी सहमति वापस ले ली है।

जस्टिस गनेदीवाला को 8 फरवरी, 2019 को बॉम्बे हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। उन्होंने 2007 में जिला जज नियुक्त होने के बाद अपने न्यायिक कैरियर की शुरुआत की थी।

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