चंडीगढ़
19 जून 2017
दिव्या आज़ाद 
ब्रह्मलीन श्री सतगुरू देव श्री श्री 108 श्री मुनि गौरवानंद गिरि जी महाराज की 30 वीं पुन्य बरसी समारोह के उपलक्ष्य में श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ  के दौरान कथाव्यास श्री अतुल कृष्ण शास्त्री जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि मनुष्य को अपने जीवन की डोर भगवान के हाथों में सौंप कर धर्म और सत्य के मार्ग का अनुसरन करना चाहिए। जिसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं उनका कोई बाल भी बांका नही कर सकता। भगवान के स्मरण से पापों का नाश होता है और सद्गति मिलती है।
इस संदर्भ में  उन्होंने अश्वथामा द्वारा पाण्डवों के पुत्रों की हत्या की कथा का श्रवण करवाया जिसमें पाण्डवों ने द्रोपदी को अश्वथामा को मारने को कहा तो द्रोपदी ने अश्वथामा की मणी निकालने के लिए कहा क्योंकि अश्वथामा ब्राह्मण पुत्र था। ऐसे में उसका वध करना उचित नही था लेकिन अश्वथामा ने जब ब्रह्मास्त्र से गर्भ में पल रहे बच्चें पर प्रहार किया तो भगवान श्री कृष्ण ने उस प्रहार को रोक दिया। जिससे भगवान कृष्ण ने गर्भ में पल रहे बालक की रक्षा की। जो कि पाण्डवों की अंतिम संतान परीक्षित थी। पाण्डवों ने भी भगवान श्री कृष्ण के हाथों अपने जीवन की डोर को सौंप दिया था। और भगवान ने पल पल उनकी रक्षा कर हर विपत्ति को दूर किया।
कथाव्यास श्री अतुल कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि भगवान ने 24 अवतार लिये। प्रत्येक अवतार लेने का प्रायोजन धर्म की रक्षा व भक्तों का उद्धार करना था। जब श्रीनारायण जी के पार्षद जय और विजय का पतन हुआ उनका पुर्नजन्म राक्षस कुल में हुआ तो उनके उद्धार हेतु भगवान ने समय समय पर बराह, नरसिंह, राम-कृष्ण के रूप में अवतार लेकर अपने भक्तों की रक्षा व धर्म की स्थापना की।
इस अवसर पर श्रीदलीप चंद गुप्ता तथा महासचिव श्रीएन.एस चौहान ने बताया कि इस दौरान महिला संकीर्तन मंडल द्वारा भगवान के मधुर भजन गाये गये जिससे उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर होकर झूम उठे।

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