जब से चुनाव का माहौल शुरू हुआ है तब से अख़बारों और चैंनलों को नए निर्देश मिल चुके हैं जो कि हर किसी के सामने प्रत्याक्ष हैं। अखबारों और चैंनलों को साफ बोल दिया गया है कि एक तो सरकार के खिलाफ कुछ नहीं लिखना है। यह केवल दिल्ली स्तर पर ही नहीं बल्कि लोकल (चंडीगढ़) लेवल पर भी साफ कर दिया गया है।

यदि आपके पास कुछ ऐसी ख़बर भी है जिससे सरकार पर कोई संदेह उठता हो तब भी आपको अनुमति नहीं है कि आप आकर ऑफिस में उसका जिक्र भी करें। इसके साथ-साथ कुछ अखबारों में दूसरा निर्देश है कि अब विपक्ष के लिए जगह नहीं है। मजबूरी में अगर आपको विपक्ष की ख़बर छापनी भी है तो उसके बदले में सरकार की खबर को उससे 3 या 4 गुना जगह देकर लगाना होगा। यानि यदि विपक्ष को 10 लाइन्स दी गई है तो उसके बदले सरकारी पार्टियों की खबरों को 80-100 लाइन्स की बनाकर पेश करना आवश्यक है।

यूँ तो इस में किसी का व्यक्तिगत दोष नहीं है लेकिन यह जनता को गुमराह करने के लिए काफी है। मीडिया का काम होता है सही ख़बर पेश करना ताकि जनता अपनी एक राय बना सके। जब मीडिया ही किसी एक का पक्ष लेना शुरू कर दे तो जनता अपनी राय कैसे बना पाएगी? अब तक तो गोदी मीडिया केवल दिल्ली स्तर पर देखने को मिला करती थी। लेकिन चुनाव माहौल ने लोकल लेवल पर भी मीडिया को गोदी मीडिया बनाकर रख दिया है। इतना ही नहीं अगर आपने इसके खिलाफ जाने की कोशिश की तो आप भी अच्छे से जानते हैं न कि इसका क्या अंजाम होगा!!

इस बारे में विस्तार से बात करते हुए एक प्रतिष्ठित अख़बार के संपादक ने कहा कि हम क्या कर सकते हैं! आजकल जो लोकल पुल-आउट का मैन एडिशन होता है, उसकी भी लीड और सेकंड-लीड दिल्ली से ही तय की जाती है। हमारे हाथ में कुछ नहीं है। इसके साथ ही पहले से ही पार्टियों के कैंपेन को लेकर भी कई तरह के निर्देश जारी किए गए हैं।

विपक्ष के सारे चुनावी प्रयास गोदी मीडिया के निर्देशों की सतह के नीचे दब गए हैं, जगह तो न मिल पाएगी अब!!!!

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