नई दिल्ली
9 अप्रैल 2017
दिव्या आज़ाद
ओड़िशा से एक ऐसी कहानी सामने आ रही है जो भारतीय राजनीति की एक बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करती है। यह कहानी एक ऐसी महिला की है, जिसने व्हीलचेयर पर रहते हुए ओड़िशा के पंचायत चुनाव में जीत का परचम लहराया।
मिनती बारिक के दोनों पैरों में जान नहीं हैं पर उन्होंने इसकी परवाह किये बिना चुनाव लड़ा और लोगों ने अपने प्यार और स्नेह से उन्हें वार्ड मेंबर बनाया। मिनती ओड़िशा के कटानबनिया ग्राम पंचायत के बाजापुर गांव से वार्ड मेंबर चुनी गई हैं।
बचपन में ही मिनती के पैरों ने उनका साथ छोड़ दिया, वो बेहद गरीबी में पली बढ़ीं पर ये उनका लोगों की सेवा करने का जज़्बा और अपने ऊपर आत्मविश्वास ही था जिसने उन्हें यह सफलता दिलाई। गाँव के लोग मिनती की हिम्मत, दोस्ताना अंदाज़ और करुणामय स्वभाव से भलीभांति परिचित हैं। मिनती अपने क्षेत्र का दौरा भी व्हीलचेयर पर बैठ कर करतीं और घर-घर जातीं। गाँव में दुर्गम रास्तों पर वो अपने हाथ और पैर के बल चलकर अपना चुनाव प्रचार करतीं।
ओडिशा के सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद इमरान अली ने मिनती की कहानी को सोशल मीडिया तक पहुँचाया। इमरान अली से बात करते हुए मिनती ने बताया, “मैं बहुत गरीब परिवार से हूं, मेरा गुज़ारा 500 रूपये प्रति माह मिलने वाली विकलांग पेंशन से होता है पर यह मेरे गाँव के लोगों का मुझमें विश्वास था जिसने मुझे चुनाव लड़ने की प्रेरणा दी और फिर जीत की ओर अग्रसर किया।”
मिनती ने बताया, “मैंने चुनाव में एक रुपये खर्च नहीं किये, मेरे पास ना पैसों का सहारा था और ना मेरे अपने पैरों का पर मेरा सहारा जनता बनी और मुझे यह सफलता मिली। मेरे पैरों में ताकत नहीं पर इसका मतलब ये नहीं कि मैं किसी की मोहताज हूँ, मेरे पास मेरी अपनी सिलाई मशीन है और वो मेरे गुज़र बसर के लिए काफी है।”
मिनती को उनके पैरों के लिए कुछ लोग चिढाते भी हैं पर वो इन सब पर ध्यान नहीं देतीं, उन्होंने चुनाव जीतकर लोगों की सेवा करने की ठानी है और वो इस सेवा के सफर पर आगे बढ़ चली हैं। मिनती का मकसद गांव के लोगों को सभी सरकारी सेवाओं का लाभ दिलाना और लोगों को बिना एक रुपया घूस दिए अपने काम करवाना है। वो अपने गाँव के सारे ग़रीबों का विशेष ख्याल रखना चाहती हैं और यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि कोई भी पीछे न छूट जाए।
मिनती की कहानी से समाज और खासकर हमारे नेताओं को भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है. मिनती एक आवाज़ हैं, जो सत्ता में दिव्यांग लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त है। तर्कसंगत मिनती के हौसले और जज़्बे को सलाम करता है और आशा करता है कि लोग उनकी कहानी को पढ़कर प्रेरणा लेंगे।