यज्ञ शुभारंभ के लिए सर्वश्रेष्ठ है अरणी मंथन से उत्पन्न अग्नि : वासुदेवानंद गिरी जी

0
498


चण्डीगढ़

16 फरवरी 2023

दिव्या आज़ाद

यज्ञ शुभारंभ के लिए सर्वश्रेष्ठ है अरणी मंथन से उत्पन्न अग्नि। यज्ञ के द्वारा ही ईश्वर की उपासना करते हैं। यज्ञ में आहुति के लिए अग्रि की आवश्यकता होती है। अग्रि व्यापक है लेकिन यज्ञ के निमित्त उसे प्रकट करने के लिए भारत में वैदिक पद्धति है जिसे अरणी मंथन कहते हैं। ये कथन था वासुदेवानंद गिरी जी का। वे बेरी वाले बाबा आश्रम, सेक्टर 35-ए ( किसान भवन के साथ) में चण्डीगढ़ में पहली बार आयोजित किए जा रहे पशुपतिनाथ महादेव स्थापना एवं 66वां महामृत्युंजय ज्ञान महायज्ञ के दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे। इस आयोजन में भगवान शिव महापुराण का लगातार 108 घन्टे संस्कृत पाठ व अखण्ड श्री शिवलिंग दुग्ध धारा अभिषेक किया जा रहा है। 

वासुदेवानंद गिरी जी ने आगे बताया कि आधुनिक युग में माचिस से लेकर गैस लाइटर होने के बाद भी यज्ञ शुभारंभ के लिए शास्त्रों में बताई गई सदियों पुरानी पद्धति से ही अग्नि को उत्पन्न किया जाता है। वह महायज्ञ शुभारंभ पर यज्ञ के लिए अग्नि प्रकट करने की वैदिक पद्धतियों को लेकर चर्चा कर रहे थे।

उन्होंने बताया कि भारत में शास्त्रों में तीन प्रकार की अग्नि से यज्ञ का शुभारंभ किया जा सकता है। इनमें सर्वश्रेष्ठ है अरणी मंथन से उत्पन्न अग्नि। उन्होंने जानकारी दी कि शमी (खेजड़ी) के वृक्ष में जब पीपल उग आता है। शमी को शास्त्रों में अग्नि का स्वरूप कहा गया है जबकि पीपल को भगवान का स्वरूप माना गया। यज्ञ के द्वारा भगवान की स्तुति करते हैं अग्नि का स्वरूप है शमी और नारायण का स्वरूप पीपल। इसी वृक्ष से अरणी मंथन काष्ठ बनता है। उसमें अग्रि विद्यमान होती है, ऐसा हमारे शास्त्रों में उल्लेख है। इसके बाद अग्रि मंत्र का उच्चारण करते हुए अग्रि को प्रकट करते हैं।


मंदिर सभा के पदाधिकारी पंडित धरमिंदर ने जानकारी देते हुए बताया कि यहां 20 फ़रवरी तक नित्य प्रतिदिन देवपूजा व अभिषेक सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक होगा। आज इस अवसर पर थानापति नारायण गिरी, महंत रूपकेश्वर गिरी, महंत रघुबीर गिरी, महंत रघुबर गिरी, महंत सागर पुरी जी भी समिलित हुए।  

LEAVE A REPLY

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.