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द डबल स्टैंडर्ड

आज के कॉलम में हम बात करेंगे चंडीगढ़ मीडिया के कुछ ऐसे महारथियों की जो डबल स्टैंडर्ड गेम खेलने में माहिर हैं। ऐसा वे अकसर महिला पत्रकारों/पीआर के साथ करते हैं। आज हम बताते हैं कि किस प्रकार महिला पत्रकारों/पीआर को आगे बढ़ने और नाम बनाने से रोकने की कोशिश की जाती है।

(आज का कॉलम किसी एक व्यक्ति के बारे में नहीं है, यह उन सब सीमित सोच रखने वालों के बारे में है जो दूसरों को आगे बढ़ता देखकर डरते हैं कि कहीं वे लोग उनसे आगे न निकल जाएं)

जी तो अब बताते हैं आपको कि किस प्रकार ऐसे महारथी अपने काम को अंजाम देते हैं। अगर आप महिला पत्रकार/पीआर हैं तो आप हमारे इस कॉलम से बहुत ज़्यादा रिलेट कर पाएंगी। यूं तो पत्रकारों को खुली सोच वाला पढ़ा-लिखा व्यक्ति समझा जाता है जो दुनिया को एक अलग नजरिए से देखते हैं। लेकिन चंडीगढ़ मीडिया में बहुत से ऐसे महारथी भी हैं जो इस बात को बिलकुल गलत साबित करते हैं। ये वो ही लोग हैं जिन्हें डबल फेस कहा जाता है। हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और!

इन महारथियों का काम होता है डबल स्टैंडर्ड गेम खेलना। ये महिला पत्रकारों को दिखाते हैं कि ये उनके हमदर्द हैं और उनको आगे बढ़ते हुए देखना चाहते हैं। ये दिखाते हैं कि किस प्रकार ये समाज में महिलाओं के नाम को रोशन होते हुए देखकर खुश होते हैं। लेकिन अगर आप इनके साथ कुछ ज़्यादा समय तक रहें तो आपको इनकी असली गेम का पता चल जाएगा। क्यों हमने सही कहा न महिला पत्रकारों/पीआर?

क्या आपके साथ ऐसा नहीं हुआ? कि आपने किसी चीज़ के लिए बहुत मेहनत की और जब असली बारी आई दुनिया के सामने अपना हुनर दिखाने की तो आपसे वो प्रोजेक्ट/न्यूज़/मौका छीन लिया गया??? और क्या बोलकर? की आप इसके लिए सही नहीं हैं! आप ये ठीक से नहीं कर पाएंगी! तुम क्यों ऐसे पचड़े वाले कामों में पड़ती हो! तुम आसान काम करो! ये तुमसे नहीं होगा! है ना?? क्या नहीं सुना आपने कभी ऐसा?

हमने बहुत सी महिला पत्रकारों/पीआर लड़कियों के हुनर को दुनिया के सामने लाने से रोकते हुए देखा है। मैं खुद उनमें से एक हूं जिसने ये सब बर्दाश्त किया है। कुछ मीडिया पर्सन महिला पत्रकार/पीआर को आगे बढ़ता देखने से डरते हैं। क्योंकि उनको खुद को पता है कि यदि महिलाओं को मौका दिया गया तो यह हमसे भी आगे निकल जाएंगी। यही डर है जिसके कारण ये डबल स्टैंडर्ड गेम खेलते हुए पाये जाते हैं।

ये महारथी आपको प्रोत्साहन देते हैं कि आप आगे बढ़े और बेहतर करें। लेकिन जब सबसे अच्छा अवसर आता है खुद को साबित करने का तब ये महिला पत्रकार/पीआर से छीनकर ऐसे लोगों को दे देते हैं जो उस अवसर के काबिल भी नहीं होते। और आप जानते हैं उसके बाद क्या होता है? जी वो अवसर प्राप्त व्यक्ति काम को बिगाड़ कर रख देते हैं। और जब ये महारथी काम बिगड़ता देखते हैं तो ये उनको ही गालियां देने लगते हैं जिनको इन्होंने खुद वह काम का अवसर दिया था।

उसके बाद जब मुसीबत आ जाती है और लास्ट मोमेंट पर काम सुधारने के लिए जरूरत पड़ती है मदद की तो….. कौन याद आता है? जी हां वो ही महिला पत्रकार/पीआर जिसको नीचा दिखाकर उसका काम छीना गया था। जानते हैं क्यों? क्योंकि इन महारथियों को भी पता है कि उस महिला पत्रकार/पीआर में कितनी क्षमता है और वह कोई भी बिगड़ा हुआ काम तक सुधार सकती है।

ये वो ही महारथी हैं जो दुनिया के सामने महिलाओं के अधिकारों का नारा लगाते हुए नज़र आते हैं और असल वक़्त आने पर कहते हैं कि नहीं इससे नहीं होगा ये काम… ये लड़की है… इसमें उतनी क्षमता नहीं है… यह नहीं कर पाएगी.. यह काम बिगाड़ देगी।

हम बस इन महारथियों से ये कहना चाहते हैं कि जनाब दुनिया का ऐसा कोई काम नहीं जो एक महिला न कर सकती हो। और यदि आपको महिलाओं से इतनी ही तकलीफ है तो कृपया खुल कर सामने आएं, इस प्रकार डबल स्टैंडर्ड गेम्स खेलने से कुछ नहीं होता। महिलाएं भोली जरूर हो सकती हैं लेकिन इतनी बेवकूफ भी नहीं होती कि आपकी हरकतें न समझ पाएं। यदि आप खुद इतनी काबिलियत नहीं रखते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप दूसरों को उनके मुकाम तक पहुंचने से रोक पाएंगे। अच्छा होगा आप अपना खुद का काम ढंग से करें, वार्ना महिलाओं की असली ताकत का नज़ारा कभी भी देखने को मिल सकता है।

उन सब महिला पत्रकारों/पीआर और यहां तक कि हर क्षेत्र की उस महिला कर्मी को समर्पित जो रोज़ ऐसे डबल स्टैंडर्ड लोगों से जूझती हैं और उसके बावजूद अपने काम को बखूभी करती चली जा रही हैं, साथ ही अपने नाम-काम को चमका रही हैं।
You Girls/Ladies are the real heros!