एक बंदर वाला मदारी बन्दर ले कर आया,
बीच गली में आके उसने डमरू बजाया।
बंदर का खेल देख लो नारा उसने लगाया,
लोगों का हजूम घरों से निकल वहां आया।
मदारी डमरू बजाता बन्दर उछल के दिखाता,
बन्दर गुलाटी लगाता, अपने करतब दिखाता।
बच्चे ओर बढ़े ताली लगाते शोर खूब मच जाता,
बन्दर पेट पर हाथ रखके खाली पेट दिखाता।
तमाशाइयों की भीड़ में से तभी कोई चिल्लाया,
बन्दर की टोपी तो देखो चश्मा इसने लगाया।
नेता बना हुआ है बन्दर फिर कैसे भूखा आया,
खेल दिखा मांगें सब से, सबको मूर्ख बनाया।
हाथ जोड़ कर खड़ा मदारी भीड़ को ये समझाए,
बन्दर मेरा करतब दिखाए तभी कुछ मिल पाए ।
नेता होता भाषण देता नोट/वोट दोनों ले जाता,
टैक्स के पैसे से सबको फ्री बिजली/पानी दे जाता।
दुनिया के इस रंग मंच पर हर कोई करतब दिखाए,
कोई भूखे पेट की ख़ातिर, कोई दौलत खूब बढ़ाए।
सबसे बड़ा मदारी वो बैठा है जिसने संसार बनाया,
अहंकार सब का तोड़ा उसने, जग को है नचाया।
बृज किशोर भाटिया, चंडीगढ़