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इतिहास से खिलवाड़ बच्चों के भविष्य एवं देश की अखंडता के लिए खतरा

चण्डीगढ़
16 फरवरी 2018
मनोज शर्मा
अरविंद भारद्वाज ने बताया कि आए दिन पद्मावत को लेकर अखबारों, टीवी चैनलों, सोशल मीडिया और कई राज्य स्तरीय मीटिंगों में चर्चाएं हो रही हैं । हाल ही में अखबार में आए एक फिल्म डायरेक्टर की बातें सुनकर मैं स्वयं हैरान हो गया जब उन्होंने कहा कि फिल्मों को आप ऐतिहासिक तथ्यों से नहीं जोड़ सकते । उन्होंने अपने लंबे-चौड़े साक्षात्कार में यह जताने का प्रयास किया कि टीवी पर दिखाए जाने वाले नाटक और फिल्म में साफ तौर पर यह लिखा जाता है कि इनका वास्तविक जीवन से कोई लेना देना नहीं है और यह मात्र कल्पनाओं पर आधारित है।  लोगों से वो यह आग्रह कर रहे थे कि फिल्म केवल काल्पनिक घटनाओं पर आधारित होती है । उन्होंने उदाहरण दिया कि जोधा अकबर में दिखाई जाने वाली कहानी पूरी तरह से असत्य थी । यहां तक कि इतिहास में सलीम और अनारकली की कहानी भी वास्तविकता से बिल्कुल मेल नहीं खाती । मेरा मानना है कि जो तथ्य उन्होंने दिए वह बिल्कुल सही है और हो भी क्यों नहीं ? उन्हें पहले भी तो सेंसर बोर्ड और समाज के सभी वर्गों की मंजूरी मिल चुकी है । आज एक इतिहास का  अध्यापक होने के नाते यदि कोई मुझे यह पूछे कि क्या इसे स्वीकार आ जा सकता है ? तो मेरा जवाब यही होगा की बिल्कुल भी नहीं । वर्तमान इतिहास पहले  से ही सही तथ्यों एंव स्रोतों के अभाव में अनेक मिथ्या एवं गलत घटनाओं से भरा पड़ा है । एक ही अवधारणा एवं तथ्य  को लेकर कई इतिहासकारों ने अपने अलग-अलग तर्क दिए हैं । आज का अध्यापक व शोध का छात्र उलझी हुई इन गुत्थियों को सुलझाने के लिए कई शोध कर हे है लेकिन वह इतिहास के साथ हो रही  से इतना विचलित एवं परेशान हो जाएगा कि उसे अपने विद्यार्थियों के सवालों का जवाब भी नहीं मिल पाएगा । कक्षा में छात्र जब अनारकली और सलीम के प्रसंग एवम् पद्मावती के सही इतिहास के बारे में उससे पूछेंगे तो उसके पास झूठे आश्वासन देने की बजाय और कुछ भी नहीं रहेगा । क्या आवश्यकता है कि रानी पद्मावती जैसी ऐतिहासिक  के साथ छेड़छाड़ कर के किसी जाति समाज एवं वर्ग के लोगों की आलोचना सही जाए? आज हमारे देश को विश्व में सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का दर्जा मिला हुआ है । इस तरह की घटनाएं ने केवल देश की अखंडता एवं एकता के लिए एक खतरा है, बल्कि वर्तमान में सीख रहे बच्चों के ज्ञान से भी खिलवाड़ हैं। यह सच है कि एक विद्यार्थी अध्यापक द्वारा बताया हुआ मौखिक ज्ञान बहुत कम याद रख पाता है, लेकिन किसी फिल्म या नाटक में देखी गई बातें उसे सदा-सदा के लिए याद रहती है । वह उन दृश्यों को कभी भी नहीं भूल पाता जो उसकी मस्तिष्क के अंदरूनी हिस्से में समा गए हैं । ऐसी में अध्यापक द्वारा बताए गए ज्ञान को कोई महत्व नहीं है । मेरा बहुत महत्वपूर्ण एवं पूछने वाला सवाल सिर्फ यह है कि क्या फिल्मी दुनिया में कमाई सिर्फ और सिर्फ इतिहास के पात्रों , प्रमुख घटनाओं से छेड़छाड़ व आम लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा कर ही कि सकती है ? मेरा मानना है कि हर व्यक्ति को अपनी सोच में बदलाव लाकर उसे सकारात्मकता की तरफ लगाना चाहिए , न कि अधिक से अधिक विवादों में आकर सुर्खियां बटोरने में । मात्र सुर्खियां बटोर कर अपनी कमाई को बढ़ाने वाले व्यक्तियों को समाज एवं छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए । एक लेखक होने के नाते मेरा यह दायित्व है कि मैं उन लोगों को सचेत एवं जागरूक करु की भविष्य में इस तरह के खिलवाड़ बंद कर दिए जाएं ।  मेरी सरकार एवं सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों से भी गुजारिश है वे इस तरह के दिशा निर्देश एवं नियम बनाए जिससे वर्तमान के छात्र गलत इतिहास के पठन-पाठन एवं अधूरे ज्ञान से बच सकें और देश की एकता और अखंडता को भी कोई खतरा न हो।
  लेखक:- अरविंद भारद्वाज LLB