बहुत समय बाद आज फिर हम हाज़िर हैं लेकर एक नया किस्सा। किसी से यह बात छुपी नहीं है कि अब पत्रकारिता का वैसा स्तर नहीं रहा है जैसा एक ज़माने में हुआ करता था। सच्चाई से ज़्यादा कमर्शलाइज़ेशन पर ज़ोर दिया जा रहा है। अब उसी तरह पत्रकारों का भी वैसा दर्जा नहीं रह गया है और इसके लिए वे खुद कहीं न कहीं ज़िम्मेदार हैं। फील्ड में रिपोर्टिंग करने से जयादा ध्यान पैसे बनाने पर चला गया है। नेशनल अख़बार हो या चैनल या फिर डिजिटल न्यूज़ हर कोई ख़बरों से पैसे बनाने के साथ साथ बिजनेसमैन भी बन बैठा है।

बड़े अख़बारों/चैनलों में कार्यरत पत्रकार आजकल प्रॉपर्टी डीलर, जिम ओनर, स्टोर ओनर आदि बन गए हैं। अब पत्रकार पहले की तरह प्रोफेशनल पत्रकार नहीं रहे। हर किसी ने अपना साइड बिज़नेस शुरू कर लिया है। कोरोना काल में सैलरियां आधी हो गई या बहुत समय तक दी नहीं गई, इसको देखते हुए बहुत से पत्रकारों को दूसरे प्रोफेशन में हाथ आज़माने पड़े।

एक तरह से यह बिलकुल गलत नहीं है क्योंकि हर किसी को अपना घर चलाना होता है। लेकिन प्रोफेशनल तौर पर यह पूरी तरह से गलत है क्योंकि उनके ऐसा करने से एक तो प्रोफेशनल रिपोर्टिंग में फर्क आ गया है क्योंकि जिसका ध्यान 2-3 जगह हो वह किसी एक काम में लंबे समय तक उत्कृष्ट नहीं रह पाता है।

दूसरा इन लोगों ने अपने-अपने संस्थानों में इस प्रकार ऊपर के लेवल या मैनेजमेंट के साथ सेटिंग कर ली है कि कोई शिकायत आने पर भी इन पर कोई ऐक्शन न हो पाए व इनकी जॉब पोस्ट बनी रहे। इससे नुकसान उन युवा या नए पत्रकारों का हो रहा है जो पत्रकारिता को लेकर सच में जुनूनी हैं व अच्छा काम करने के साथ-साथ इन पत्रकार बने बिजनेसमैन की पोस्ट पर काम करने के लायक भी हैं।

संस्थानों की मैनेजमेंट आंखें मूंद कर इसलिए बैठ जाती है क्योंकि उनको ऐड व बिज़नेस चाहिए होता है और पुराने होने के कारण ये पत्रकार वह लाने में काफी हद तक सक्षम होते हैं। अब बात करें कि यह पत्रकार आखिर अपने-अपने बिज़नेस शुरू करने के बाद भी पत्रकारिता क्यों नहीं छोड़ देते हैं तो यह सबको पता है कि पत्रकार होने के कितने लाभ हैं।

ज़्यादातर पावर के लिए इस फील्ड को छोड़ कर नहीं जाना चाहते क्योंकि इन पत्रकारों ने अपने व अपने लोगों के काम करवा कर देने होते हैं जहां इनका पत्रकार वाला दर्जा काम आता है। अब इसका नुकसान भुगत रहे युवा पत्रकारों के पास कंटेंट राइटर बनने, वेबसाइट खोलकर डिजिटल मीडिया में शामिल होने या किसी अन्य फील्ड को चुनने के इलावा कोई चारा नहीं बचा है।

यदि कोई संस्थान युवा या नए पत्रकारों को मौका दे भी तो भी उनको उतनी सैलरी या इज़्ज़त नहीं दी जा रही है जितनी ये बिज़नेसमैन पत्रकार ले रहे हैं।

दोनों हाथों में लड्डू लिए फिर रहे इन जॉर्नलिस्ट टर्न बिजनेसमैन ने ऐसी सेटिंग बना ली है कि कोई इनके 1 हाथ से भी लड्डू ले नहीं पाए।

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