चंडीगढ़

7 अप्रैल 2017

दिव्या आज़ाद 

पंजाब में मानसिक रोगों से पीडि़त मरीजों की अनुमानित संख्या 21.9 लाख है (जिनकी उम्र 18 साल से अधिक है)। इनमें से सिर्फ 4.38 लाख (20 प्रतिशत) ही अपना इलाज करवा रहे हैं और बाकी किसी प्रकार का कोई इलाज प्राप्त नहीं कररहे हैं। इलाज में इतने अधिक अंतर के कई कारणों में से एक इलाज सुविधाओं का सीमित होना प्रमुख है। पंजाब राज्य में सिर्फ 127 ही मनोचिकित्सक हैं।

इलाज में इतने अधिक अंतर के चलते ये सुझाव दिया गया है कि मानसिक विकारों के सुरक्षित और प्रभावी इलाज के लिए लोगों में जागरूकता का स्तर बढ़ाया जाए। स्वास्थ्य विभाग के (आशा वर्कर्स, एएनएम और आंगनवाड़ी वर्कर्स) की संख्या को बढ़ाया जाए औरछोटे छोटे वित्तीय प्रोत्साहन के साथ उनकी मदद से इस संबंध में जागरूकता बढ़ाई जाए।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के परिणामों को आज विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर जारी किया गया। सर्वे को पंजाब राज्य में अगस्त, 2015 से अप्रैल 2016 के दौरान किया गया और इसकी रिपोर्ट आज जारी की गई। सर्वे को साईकेट्री विभाग, गर्वनमेंट मेडिकलकॉलेज एंड हॉस्पिटल (जीएमसीएच), चंडीगढ़ द्वारा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसिज (एनआईएमएचएएनएस), बेंगलुरू की सहभागिता में किया गया।

ये सर्वे राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेश्रण का हिस्सा है जो कि देश के अन्य 12 राज्य में भी समानांतर तौर पर किया गया और इसे भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा वित्तीय मदद प्रदान की गई। देश में किया गया ये सबसे सटीक सर्वे हैऔर इस सर्वे में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया का उपयोग किया गया और संबंधित आंकड़ों को टैबलेट्स आदि डिवाइसेज के उपयोग से एकत्र किया गया। इस दौरान पेन और पेपर इंटरव्यू आदि का कोई इस्तेमाल नहीं किया गया। सर्वे को पंजाब के चार जिलों में संचालित कियागया, जिनमें फरीदकोट, लुधियाना, मोगा और पटियाला शामिल हैं। इस दौरान रेंडमली चुने गए 2895 लोगों से बातचीत कर उनकी इंटरव्यू ली गई।

डिपार्टमेंट ऑफ साइकेट्री, जीएमसीएंडएच, 32 द्वारा रिपोर्ट के वितरण के मौके पर गर्वनमेंट रीहैबलिएटेशन इंस्टीट्यूट फॉर इंटलेक्चुअल डिसेबिलिटी (ग्रिड), सेक्टर 31 में एक वर्कशॉप भी आयोजित की गई। इस में डॉ.बी.एस.चवण, प्रोफेसर एवं हैड, डिपार्टमेंट ऑफसाइकेट्री, जीएमसीएंडएच ने अवसाद के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी देते हुए सेशन की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि कैसे ये हर किसी की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। इस सेशन के दौरान संबोधित करने वाले अन्य प्रवक्ताओं में डॉ. रोहित गर्ग, असिस्टेंटप्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ साइकेट्री, गर्वनमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पटियाला और डॉ. शिवांगी मेहता, असिस्टेंट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ साइकेट्री, जीएमसीएच, शामिल हैं।

पंजाब में किए गए सर्वे के परिणामों को जीएमसीएच में एनआईएमएचएएनएस बेंगलुरू के एक्सपर्ट समूह के समक्ष प्रो.बी.एस.चवण और डॉ.सुभाष दास ने रखा, जिन्होंने पंजाब में इस सर्वे का संचालन किया। एक्सपर्ट ग्रुप ने रिपोर्ट के आाधार पर सुझाव भी दिए हैं किजिला मानसिक स्वास्थ कार्यक्रम को पंजाब के सभी जिलों में लागू किया जाए। इसके अलावा पंजाब सरकार को अपने स्वास्थ्य बजट के अंदर ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक बजट अलग से भी रखना चाहिए और कुल स्वास्थ्य बजट में से कम से कम 5 प्रतिशतबजट मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए रखना चाहिए।

इसके साथ ही ये भी कहा गया है कि पंजाब सरकार को राज्य स्वास्थ्य सेवाओं के अंदर ही एक स्पेशलिस्ट कैडर भी तैयार करना चाहिए ताकि मनोचिकित्सक भी राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल हो सकें। उसके बाद उनको जिला और सीएचसी स्तर पर तैनातकिया जाए और पंजाब के प्रत्येक जिला अस्पताल में 10 बेड साइकेट्री यूनिट के लिए होने चाहिए। इससे पंजाब में काफी हद तक बढ़ चुके मानसिक स्वास्थ्य संकट और इमरजेंसी से निपटने में मदद मिलेगी।

सभी मेडिकल अधिकारियों और अन्य हेल्थ केयर स्टाफ को भी मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए और इसे डीएमएचपी बजट के तहत प्रदान किए गए ट्रैनिंग बजट के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। इसके साथ ही पूरा साल जिला अस्पतालऔर सीएचसी में जरूरी साइकोट्रॉपिक दवाओं की उपलब्धता को भी सुनिश्चित किया जाए।

राज्य सरकार को अपनी एक अलग मानसिक स्वास्थ नीति को भी तैयार करना चाहिए या राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति को अपनाना चाहिए, जिसमें राज्य के खास पहलुओं को भी शामिल किया जाए। ये भी सिफारिश की गई है कि राज्य में मानसिक स्वास्थ्यविशेषज्ञों की कमी को देखते हुए राज्य सरकार को मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में मानव संसाधनों को बढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही एमडी इन साइकेट्री, एमफिल इन क्लीनिकल साइकोलॉजी, एम फिल इन साइकेट्री सोशल वर्क और डिप्लोमा इन साइकेट्री नर्सिंग को भीशुरू कर देना चाहिए। चूंकि इसमें कुछ अधिक समय लग सकता है, ऐसे में मेडिकल अधिकारियों, सोशल वर्कर्स और साइकोलॉजिस्ट्स की कम अवधि की ट्रैनिंग को अभी से शुरु किए जाने की जरूरत है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस, डिपार्टमेंट ऑफ साइकेट्री, गर्वनमेंटमेडिकल कॉलेज चंडीगढ़ से भी कम अवधि की ट्रैनिंग में मदद के लिए पूछा जा सकता है।

पंजाब राज्य में एनएमएचएस रिपोर्ट में प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं:

मानसिक रोग की कुल आयु में मौजूदगी 17.94 प्रतिशत और कुल वर्तमान मानसिक विकृति 13.42 प्रतिशत थी। इस प्रकार, पंजाब में लगभग 21.9 लाख मरीजों (18 साल से अधिक) मानसिक रोगों से ग्रस्त हैं। उनमें से, केवल 4.38 लाख (20 प्रतिशत) के पास उपचारकी सुविधा है या अपना इलाज करवा रहे हैं लेकिन बाकी कोई इलाज नहीं मिल रहा है। इलाज में कमी के इस उच्च अंतर के विभिन्न कारणों में सीमित उपचार सुविधाएं सबसे प्रमुख तौर पर शामिल हैं।

पंजाब राज्य में सिर्फ 127 मनोचिकित्सकों (0.46 / 100,000 आबादी) हैं और वे ज्यादातर शहरी क्षेत्रों में ही केंद्रित हैं। वर्तमान में पंजाब में 4 मेडिकल कॉलेजों (जीएमसी पटियाला-3, जीएमसी अमृतसर-3, जीएमसी फरीदकोट-4, डीएमसी लुधियाना-3) में सिर्फ 13 एमडी मनोचिकित्सा की सीटें हैं और इस प्रकार पंजाब में इस संख्या के साथ तो मनोचिकित्सकों की कमी को पूरा करने के लिए कम से कम 11.5 साल की आवश्यकता होगी ताकि इलाज सुविधाओं को बेहतर किया जा सके।

जब तक मौजूदा मेडिकल कॉलेजों और अन्य मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोतरी नहीं की जाती है, तब तक एमडी मनोचिकित्सा शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल्स की अत्याधिक कमी है(केवल 12 क्लीनिक मनोवैज्ञानिक, 32 मनोचिकित्सक सामाजिक कार्यकर्ता और 4 नर्स हैं जिन्हें मानसिक स्वास्थ्य में प्रशिक्षित किया गया है)। क्लीनिक मनोवैज्ञानिक को कम सेकम सीएचसी पर विकलांगता प्रमाणन के लिए आईक्यू मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है और पंजाब को कम से कम 226 क्लीनिकल मनोवैज्ञानिकों (जिला अस्पताल 22, 41 उप-मंडल अस्पताल, 163 सीएचसी) की आवश्यकता होगी। वर्तमान में पंजाब में कोईसंस्था नहीं है, जिसे क्लीनिकल मनोवैज्ञानिकों के प्रशिक्षण के लिए भारतीय पुनर्वास परिषद (आरसीआई) द्वारा मान्यता प्राप्त हो। इसी तरह, पंजाब राज्य में मनोचिकित्सा सोशल वर्क में एम फिल और मनोचिकित्सा नर्सिंग में डिप्लोमा प्रारंभ करना आवश्यक है।

शराब और मादक पदार्थ का उपयोग करने से संबंधित विकारों का प्रसार क्रमश: 7.90 प्रतिशत और 2.48 प्रतिशत था। इस प्रकार, 18 वर्ष से अधिक उम्र के पंजाब की लगभग 8 प्रतिशत जनसंख्या शराब पर निर्भर है। इसी तरह, पंजाब में लगभग 4,00,000 लोग (18 वर्ष से अधिक) हैं जो नियमित रूप से नशीली दवाएं (अफीम और हेरोइन) ले रहे हैं। मोगा जिले में सामुदायिक नेताओं के साथ एक केंद्रित समूह चर्चा (एफजीडी) की गई और समूह ने सहमति व्यक्त की कि पंजाब में मादक द्रव्यों के सेवन में अचानक काफी बढ़ोतरी होगई है।

इसके साथ ही साथियों के दबाव और भोले भाले कम उम्र के युवाओं को शामिल करने, आसान उपलब्धता, बेरोजगारी (शिक्षित युवक नहीं चाहते खेतों में काम करने के लिए कहा जाए, और उनके पास कोई काम नहीं है और पूरे दिन खाली रहते हैं), और युवाओं के बीचतनाव को संभावित कारकों के रूप में सामने रखा गया है, जिसके चलते वे नशों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि हेरोइन काफी महंगी है, तो युवाओं ने सस्ते नशे के लिए इंजेक्शन लेना शुरू कर दिया है और सीरिंज और सुइयों का बहुत बड़ा हिस्सा आपस में शेयरभी किया जाता है। 4,00,000 से अधिक लोग जो नशीली दवाएं ले रहे हैं, उनमें से सिर्फ 80,000 को ही उपचार प्राप्त हुआ हैं और बाकी का भी इलाज किए जाने की जरूरत है। युवाओं में एचआईवी और हेपेटाइटिस बी के फैलने का जोखिम बहुत अधिक है।

भारत के अन्य राज्यों के निष्कर्षों के विपरीत, गांवों में रहने वाली जनसंख्या शहरी आबादी (14.67 प्रतिशत से 11.48 प्रतिशत) की तुलना में मानसिक विकारों से अधिक प्रभावित है। मानसिक विकारों के अलावा, ड्रग्स गांव के युवाओं को काफी हद तक प्रभावित करअपनी चपेट में ले चुकी है। यह पंजाब राज्य की चिंता का कारण है। उनमें से करीब 0.5 प्रतिशत आत्महत्या के जोखिम में हैं और चूंकि उनमें से कई किसान हैं, ऐसे में नई सरकार के लिए किसानों में आत्महत्या एक बड़ी चुनौती होगी।

सर्वेक्षण में एक और बड़ी खोज में 60 साल से अधिक व्यक्तियों के बीच मानसिक विकार की उच्च दर शामिल है, कम आय वाले, विधवा, तलाकशुदा और अलग-थलग हुए व्यक्ति भी मानसिक विकारों का शिकार हैं। कमजोर समूह के लिए विशेष सेवाएं देने के लिएतत्काल आवश्यकता है।

विभिन्न मानसिक विकारों में, पंजाब में 18 साल से अधिक आयु में लगभग 3,00,000 लोग अवसाद का शिकार हो रहे हैं जो कि कई सारी बीमारियों के वैश्विक बोझ (जीबीडी) के प्रमुख कारण के रूप में जाना जाता है। उस पर दुखद ये है कि इनमें से अधिकांश व्यक्तिउपचार नहीं कर रहे हैं। हाल ही में, भारत के प्रधानमंत्री ने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मना की बात’ में अवसाद की पहचान और उपचार की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर विषय को ‘अवसाद, चलो बात करते रहें’ रखा है। इस प्रकार, अवसाद एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है जिसे जल्दी से निपटने की जरूरत है।

2 COMMENTS

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