थका पड़ा हूँ मैं पर मुझको चलना ज़रूर है,
वक्त बहुत कम है पर मंज़िल अभी दूर है ।
रास्ते तो बहुत हैं पर मुझे जाना किधर है,
कैसा नादान हूँ मैं मुझे ना खुद को खबर है।
चौराहे पर खड़ा होने से क्या राह मिल जाता है,
पूछने पर भी क्या कोई सही राह दिखाता है ।
कोई यह रास्ता तो कोई वोह रास्ता दिखाता है,
अंत: नाम उसी का सबको मंज़िल पर पहुंचाता है ।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़
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