सुनने में अटपटा लग रहा होगा लेकिन यह हकीकत है चंडीगढ़ मीडिया चैंनलों और अखबारों में काम करने वाले कैमरामैन या फोटोग्राफर की।

आज की टेक्नोलॉजी भरी लाइफ में बहुत से यंगस्टर्स फोटोग्राफी या वीडियोग्राफी को अपना पैशन बनाकर काम कर रहे हैं या काम करने की इच्छा रखते हैं। लेकिन बहुत सी फील्ड में फोटोग्राफर या कैमरामैन को वह दर्जा नहीं दिया जा रहा जिसके वे हकदार हैं।

आज हम बात करेंगे कि किस प्रकार बहुत से चैनल रिपोर्टर या अखबारों में काम करने वाले सीनियर पत्रकार अपने कैमरामैन या फोटोग्राफर के साथ पेश आते हैं। हर चैनल रिपोर्टर के साथ एक कैमरामैन फील्ड पर अपॉइंट किया जाता है। वे लोग ज्यादातर समय साथ ही बिताते हैं जिससे होना यह चाहिए कि उनमें अच्छा तालमेल बन चुका हो। लेकिन बहुत से नए या यंग चैनल रिपोर्टर अपने कैमरामैन के साथ गलत तरीके से पेश आते हैं।

अब हम आपको बताते हैं कि किस प्रकार का गलत तरीका! हाल ही में कुछ महीने पहले एक इवेंट में एक चैनल की रिपोर्टर को अपने खुद के कैमरामैन के साथ बदतमीजी करते हुए देखा गया। इवेंट लगभग खत्म था और सभी खाना खा रहे थे। चैनल रिपोर्टर खाना खा चुकी थी। कुछ देर बाद जैसे ही उनके कैमरामैन ने अपनी प्लेट में खाना डाला और दो निवाले खाए ही थे कि मैडम का बुलावा आ गया। अब आपको बताते हैं कि सबके सामने मैडम ने अपने कैमरामैन को किस तरीके से बुलाया। मैडम ने उंगलियों से चुटकी बजाते हुए दूर से इशारा किया और आवाज लगाई “ओए! इधर आ पहले। काम कर, खा बाद में लियो।” अब यह किसी भी प्रकार से फ्रेंडली नहीं था क्योंकि मैडम के हावभाव और बोलने का तरीका बता रहे थे कि किस प्रकार वे अपने रिपोर्टर होने का हक जता कर कैमरामैन को जलील करने की कोशिश कर रही है।

यह तो केवल एक किस्सा है मैडम रोज ही अपने कैमरामैन के साथ कोई न कोई बदतमीजी जरूर करती हैं। केवल यह जताने के लिए कि वह रिपोर्टर है और कैमरामैन खुद को उनसे नीचे ही समझे। इसके अलावा कई रिपोर्टर ऐसे हैं जो चैनलों से मिलने वाले रोजाना के खर्चे को कैमरामैन तक पहुंचने ही नहीं देते। सबको पता होगा कि बहुत से चैनल रिपोर्टर और कैमरामैन को रोजाना का कुछ खर्चा जैसे कि ट्रेवल के लिए, खाना आदि के लिए दिया जाता है। यह पैसे अकसर रिपोर्टर को पकड़ाए जाते हैं या उनके अकाउंट में डाले जाते हैं। लेकिन बहुत से, (जी हम बहुत से की बात कर रहे हैं ना कि सब की) बहुत से रिपोर्टर कैमरामैन के लिए मिले पैसे को उन तक पहुंचने तक नहीं देते और खुद ही इस्तेमाल कर लेते हैं। बाद में यदि कैमरामैन पूछे तो इधर उधर के खर्चे का नाम लेकर टाल देते हैं।

यह तो केवल कुछ किस्से हैं। लेकिन बहुत से चैंनलों के कैमरामैन की हालत बहुत ही बदतर है। इसके साथ ही अब बात करते हैं अखबारों में काम करने वाले फोटोग्राफरों की।

सबको पता है कि अखबार में यदि फोटो न हो तो खबर पढ़ने का जनता का इंटरेस्ट कम हो जाता है। इसलिए जितने भी फोटोग्राफर हो कम ही है क्योंकि शहर में रोजाना इतने इवेंट होते हैं कि सभी को कवर कर पाना मुश्किल हो जाता है। फिर भी भागा दौड़ी करके हमारे फोटोग्राफर सबसे बढ़िया और अलग फोटो लाने की होड़ में लगे रहते हैं। बहुत से तो ऐसे भी हैं जिनकी सैलेरी बहुत कम होती है जिससे कि उनका खर्चा तक नहीं निकल पाता। उसके बावजूद वे अपना काम पूरी लगन से करते हैं। इसके बाद वे रिपोर्टर या अखबार में काम करने वाले साथियों से क्या चाहते होंगे? थोड़ा सा स्नेह और इज्जत! हैं ना???

लेकिन कुछ पत्रकार अपनी पोस्ट और एजुकेशन का फायदा लेते हुए फोटोग्राफरों को इस प्रकार से ट्रीट करते हैं जैसे कि वे कोई मजदूर हों। उनसे तू करके बात की जाती है, दूरदराज की लोकेशन के फोटोस निकालने के लिए कहा जाता है, लोकेशन पर ना पहुंचने पर शिकायत करने की धमकी दी जाती है, ऊंची आवाज में बोला जाता है, सबके सामने जलील किया जाता है। क्या यह सही है? माना कि बहुत से फोटोग्राफर या कैमरामैन रिपोर्टरों से कम पढ़े-लिखे और छोटी पोस्ट पर होते हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम उनके साथ बदतमीजी से पेश आएं।

अखबार में काम करने वाले एक फोटोग्राफर के साथ बहुत ही बुरा सलूक किया गया था। यह कुछ वर्ष पुरानी बात है। वह फोटोग्राफर नया-नया फील्ड में आया था और एक सीनियर फोटोग्राफर के साथ काम कर रहा था। सीनियर फोटोग्राफर उस नए फोटोग्राफर के साथ इस प्रकार से पेश आते थे जैसे वह कोई उनका बंधुआ मजदूर हो। उसे फील्ड में सबके सामने गाली गलौज करके बुलाना, गलत प्रकार की टिप्पणियां करना, काम ठीक से न होने पर लताड़ना आदि जैसी चीजें करने लगे थे। एक दिन तंग आकर उस फोटोग्राफर ने सबके सामने हाथ जोड़े और उस सीनियर फोटोग्राफर को अपना गुरु मानने से ही इंकार कर दिया और काम छोड़कर चला गया।

इस प्रकार का व्यवहार किसी भी तरह से सही नहीं है। सभी जानते हैं कि फोटोग्राफर और कैमरामैन का काम कोई आसान नहीं है। वीडियो बनाना, कैमरा चलाना, वीडियो को एडिट करना, लाइव करना, कोई टेक्निकल परेशानी आने पर एकदम सब ठीक करना आदि जैसे मुश्किल काम हैं जो कैमरामैन रोज करते हैं और वह भी बहुत कम तनखा में। उस ही प्रकार अलग-अलग लोकेशन पर जाकर फोटो खींचना, फोटोज को एडिट करना, कई बार फोटो न होने पर दूसरों से अरेंज करना आदि जैसे काम फोटोग्राफर करके देते हैं और हम सभी को पता है कि प्रोफेशनली फोटो एडिट करना भी कोई आसान काम नहीं है।

यदि रिपोर्टर पढ़े-लिखे तेज दिमाग वाले हैं और अच्छी पोस्ट पर लगे हैं तो भी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के बिना उनका काम अधूरा ही है। एक ही संस्था में काम करने के बावजूद कैमरामैन या फोटोग्राफर के साथ इस प्रकार से पेश आना जैसे वह हमसे कुछ कम हो। लेकिन सच्चाई यह है कि उनके पास अपना टैलेंट है और हमारे पास अपना। हमें कभी यह नहीं भूलना चाहिए की एक अच्छी खबर हमेशा टीम एफर्ट से ही पेश की जा सकती है। कैमरामैन और फोटोग्राफरों को अपनी टीम का हिस्सा समझते हुए उन से इज्जत से पेश आना चाहिए। बहुत से सीनियर चैनल रिपोर्टर या अखबार के पत्रकार ऐसे भी हैं जो अपने कैमरामैन को अपने भाई, दोस्त या बेटे के समान ट्रीट करते हैं।

सभी को उन सीनियर रिपोर्ट्स या अच्छे पत्रकारों से सीख लेनी चाहिए कि किस प्रकार पोस्ट को न देखते हुए इंसानी तौर पर एक दूसरे का सम्मान किया जाता है।

रिपोर्टरों के लिए यह समस्या बहुत छोटी हो सकती है लेकिन कैमरामैन और फोटोग्राफर इस समस्या से सालों से जूझते आ रहे हैं और रोज बेइज्जत होकर कड़ी मेहनत करके भारी मन से अपने घर जाते हैं। सभी को कोशिश करनी चाहिए की ज्यादा से ज्यादा उन्हें अपनापन दिखाएं और ज्यादा नहीं तो कम से कम थोड़ी इज्जत से पेश आएं।

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