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मेरी सांसें…

मेरी सांसें खुद जब साथ मेरा ना दे पाएंगी,
फिर किस तरह साथ मेरा तुम दे पाओगी।
    सफर 39 सालों का कट गया अपना,
    खट्टी मीठी यादों का बन गया सपना।
    बीती बातें याद आ कर तुम्हें सताएंगी,
     पर तुम मुझे पास ना अपने पाओगी।
                                      मेरी सांसें…
    घर में जब जब तू नयी चीजें बनायेगी,
    खिलाने के वास्ते मुझे ना ढूंढ़ पाओगी।
    अब ज़बरदस्ती चीजें खिला ना पायेगी,
    मुख मेरे में चीजों को ना डाल पाओगी।
बृज किशोर भाटिया, चंडीगढ़