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मैं स्वाभिमानी नारी हूं : मंजू मल्होत्रा फूल

सोना नहीं मैं, चांदी नहीं मैं, ना  कोई जेवर भारी हूं जगत जननी ईश्वर की रचना मैं स्वाभिमानी नारी हूं 
जीवित प्राण हूं ,श्वास भी चलती हृदय भी मेरा धड़कता है पत्थर नहीं जो पीड़ा ना हो आकांक्षाओं का सागर उमड़ता है 
उड़ सकती आकाश में हूं कैद  में मुझे क्यों रखते हो कैसी सोच ये पाले हो बुरखों से मुझे क्यों ढकते हो 
कीमती समझ हिफ़ाज़त के नाम पर दमन सदा करते आए जो शमशीर उठा सकती है रण में भी उतर जाए 
मैं भी जन्मी इसी भूमि पर श्वासों का अधिकार भी पाया है फिर किस आधिपत्य से तुमने अस्तित्व को मेरे भुलाया है 
अस्तित्व मेरा न पराजय के लिए बोध यह मैं भी लाई हूं एहसानों तले ना दबाना मुझको मैं आकाश में उड़ने आई हूं 
नारी हो सकती है कोमल कमजोर उसे बनाना ना कीमती सामान केवल समझकर तालों से शोभा बढ़ाना ना 
सिंहासन की मैं मांग न करती राहें मुझे भी बनाने दो अपने पैरों से चलकर दुनिया में मेहनत से हस्ती बनाने दो 
दुर्गा रणचंडी का रूप दिखाना वक्त पर मुझे भी आता है भयावह युग में सिर को उठाना समय बदलना आता है 
वीर माताओं ने अपनी  जोजौहर से कर दिखलाया थायुद्ध जीत कर भी दुश्मन ने पराजय एहसास ही पाया था
चित्तौड़ दुर्ग के जौहर जैसा पर अब न कुछ करने वालीशमशीर उठाकर सेना बनाकर अब वक्त जरा बदलने वाली 
समस्त नारियों को यह समझना कर्मों के मार्ग पर चलना है शस्त्रों को धार जरा लगा लो अब रण में तुम्हें उतरना है 
सोना नहीं मैं, चांदी नहीं मैंन  कोई जेवर भारी हूंजगत जननी ईश्वर की रचना मैं स्वाभिमानी नारी हूं मैं स्वाभिमानी नारी हूं