चंडीगढ़
18 जून 2017
दिव्या आज़ाद
ब्रह्मलीन श्री सतगुरू देव श्री श्री 108 श्री मुनि गौरवानंद गिरि जी महाराज की 30 वीं पुन्य बरसी समारोह के उपलक्ष्य में श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ  के दौरान कथाव्यास श्री अतुल कृष्ण शास्त्री जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि मनुष्य में ईश्वर की भक्ति का होना अनिवार्य है भक्ति के दो पुत्र हैं ज्ञान और वैराग्य। भक्ति के बिना ज्ञान और वैराग्य से भरा यह जीवन निशफल हो जाता है। उन्होंने कहा कि भक्ति प्राप्त करने के लिए सत्संग में जाना बहुत जरूरी है क्योंकि महापुरूषों ने कहा है कि बिनु सत्संग विवेक न होई, पर राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
कथा व्यास श्री अतुल कृष्ण शास्त्री जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि भक्ति के दो पुत्र है ज्ञान और वैराग्य। एक बार भक्ति अपने पुत्रों को लेकर वृदांवन पहुंची वहां पर भक्ति जवान हो गई परन्तु ज्ञान और वैराग्य उनके दोनों पुत्र कमजोर होते गये। वहीं से नारद जी गुजर रहे थे तो भक्ति ने उनको नमस्कार किया और उनसे प्रार्थना की कोई ऐसी युक्ति कीजिये कि उनके दोनों पुत्र ज्ञान और वैराग्य पुष्ट(स्वस्थ) हो जायें। इसपर नारद जी तीनों को लेकर बद्रीनाथ पहुंचे तथा वहां नारद जी ने सनंत कुमारों से प्रार्थना की भक्ति के ये दोनो पुत्र ज्ञान और वैराग्य पुष्ट हो जाये। सनंत कुमारों ने इस पर  उन्हें श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करवाने को कहा। इस पर नारद जी ने सनंत कुमारों से ही पुन: प्रार्थना की कि वे स्वयं ही इन्हें श्रीमद् भागवत कथा सुनायें। जिस पर सनंत कुमारों ने भक्ति, ज्ञान और वैराग्य को श्रीमद् भागवत की कथा का अमृत रसपान करवाया। इस कथा के सुनते ही ज्ञान और वैराग्य पुष्ट (स्वस्थ) हो गये।
उन्होंने कहा कि मनुष्य को सत्संग इस प्रकार से श्रवण करना चाहिए कि उनका मन ही वृंदावन बन जाये और मन के वृंदावन होने से उन्हें किसी भी तीर्थ यात्रा में जाने की आवश्यकता नही रहती है।

LEAVE A REPLY

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.