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“काम ही काम, नहीं आराम “

जब नौकरी थी, पहले  स्कूल जाती, बच्चों को पढ़ाती ,
  अब रिटायर्ड हो चुकी हैं, घर में रहती, स्कूल नहीं जातीं।
  ज़िन्दगी देखो कैसे चलते चलते एकदम थम सी जाती है,
  जैसे चलते चलते गाड़ी अचानक पटरी से उतर जाती है।
          कितने साल रोज़ स्कूल के बच्चों को पढ़ाया,
          स्कूल से छुटी के बाद अपने बच्चों को पढ़ाया।
          ना जाने कितने शिष्यों के भविष्य को सँवारा है,
          घर में संस्कार/शिक्षा दे कर बच्चों को निखारा है।
   हम दोनों ही नौकरी करते,वह स्कूल ,मैं दफ्तर जाता,
   वह सुबह 7 बजे, मैं 9 बजे के बाद काम पर जाता।
   वह खाना बना जाती, बच्चे बैग में,मैं  टिफन में ले जाता,
   फिर रात का वह खाना बनाती परिवार मिल कर खाता।
         बच्चों को पढ़ लिख कर अपनी नौकरी पे जाना पड़ा,
         शादी हो जाने पर अपनी पत्नियों को ले जाना पड़ा ।
         वह रिटायर्ड 2010 मैं 2005 को रिटायर्ड हो गया,
         रिटायर्ड होने के बाद ही घर में साथ अपना हो गया।
 जब नौकरी थी तब भी वह घर/स्कूल का काम करती ,
 रिटायर्ड होने के बाद भी वे घर के कामों से न थकती।
 पहले उसके पास काम बहुत था मिला ना था आराम ,
 काम की जगह बदली वह न बदली करे ना वो आराम।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़