अकसर ऐसा देखा गया है कि सरकारी अफ़सर या नेता अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी वो मकान खाली नहीं करते हैं जो उन्हें अलॉट किए जाते हैं। उनके लिए यह आम बात है। लेकिन पत्रकारों को तो मुश्किल से सरकारी मकान अलॉट होते हैं। इसके बाद यदि आपको पता चले कि दो पत्रकार सरकारी मकान दबाए बैठे हैं तो?
जी हाँ! दो पत्रकार सरकारी मकान दबाए बैठे हैं। इतना ही नहीं उनको मकान खाली करने के निर्देश भी दिए जा चुके हैं उसके बावजूद इन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
चंडीगढ़ के दो पत्रकार जो कई वर्षों तक अच्छी व बड़ी संस्थानों से जुड़े रहे, उन्हें सरकारी मकान मिले थे। लेकिन 60 वर्ष की उम्र पूरी होने के बाद उन्हें अपने मकान खाली करने थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया। इसको देखते हुए उन्हें एस्टेट ऑफिस से कारण बताओ नोटिस भेजा गया। आपको बता दें कि इन में से एक पत्रकार पिछले 3 वर्षों से यह मकान दबाए बैठे है। दूसरे पत्रकार को इस वर्ष जून में मकान खाली करना था।
जो पत्रकार साहब 3 साल से मकान कब्ज़े में किए बैठे हैं उन पर पी.पी. एक्ट के तहत केस भी चला और उन्हें मकान खाली करने के हुकुम हुए। लेकिन यह जनाब कुछ ज़्यादा ही बेशर्म हैं शायद। इन्होंने तब भी मकान खाली नहीं किया।
लगता है यह जनाब तब तक मकान खाली नहीं करने वाले जब तक पुलिस आकर इनका समान बाहर नहीं फेंक देती है। अब इनको भी सोचना चाहिए कि इनकी किस्मत अच्छी थी जो इनको मकान मिल गया। अब समय आ गया है तो आराम से मकान छोड़ देना चाहिए नहीं तो इतने बरसों कि कमाई इज़्ज़त 1 मिनट में खत्म हो जाएगी जब इनका सामान फेंका जाएगा।
पत्रकार साहब घर खाली कर दीजिए, आपके जैसे और कई पत्रकार लाइन में बैठे हैं जिनको सरकारी मकान की उम्मीद है। इस उम्मीद के लिए उन्होंने कितने ही चक्कर नहीं लगाए होंगे सरकारी ऑफिसों के। अब आपके जैसे पत्रकार अवैध कब्जे किए बैठे रहेंगे तो दूसरों की बारी कब आएगी?
या आप सच में सामान फेंके जाने के ही इंतेज़ार में बैठें हैं????