कोरोना का कहर हद से ज़्यादा बढ़ चुका है। कोरोना ने हमें सिखाया की जान और भूख की कीमत आज भी सबसे ज़्यादा है। लेकिन जहाँ कोरोना के आने से लोगों में इंसानियत बढ़नी चाहिए थी, उसकी बजाए कई लोगों ने इसको धंधा बना लिया। पहले राशन बाँट कर फ़ोटो खिंचवाने का चलन चल पड़ा औऱ अब लॉकडाउन में ढील आने के बाद से नया फैशन आया है “कोरोना वॉरियर” नाम से सम्मानित होने का।

हैरानी की बात यह है कि कोरोना वॉरियर से वे लोग सम्मानित हो रहे हैं जो पूरे लॉकडाउन व उसके बाद भी घर से 1 बार भी बाहर तक नहीं निकले। मतलब उनको सम्मान मिल रहा है जिन्होंने घर बैठकर सिर्फ खाया-पिया है न कि अपनी जान जोखिम में डालकर काम किया है। मुझे इससे भी ज़्यादा हैरानी उन पर होती है जिन्होंने ऐसे लोगों को सम्मानित कर दिया। संस्थाएं तो लोगों की मदद करने या सही चीज़ के लिए आवाज़ उठाने के लिए नहीं बनाई जाती थी? या फिर शायद ऐसे नाकारा लोगों को सम्मानित करने के लिए भी बनती होंगी भाई, हमने तो पहली बार देखा है ऐसा।

ऑनलाइन ही मिलने लगे सर्टिफिकेट

एक और चलन आया है, न तो खुद घर से बाहर निकले, न वो संस्था वाले निकले जिन्होंने सम्मानित करना है। तो फिर सम्मान समारोह कैसे बाहर निकल कर करते। इसलिए कई संस्थाओं ने बिना देखे-सोचे कुछ लोगों को ऑनलाइन सर्टिफिकेट जारी कर कोरोना वॉरियर घोषित कर दिया। अब यह सर्टिफिकेट सोशल मीडिया पर दिखाकर कमेंट्स बटोरने के बड़ा काम आ रहे हैं।

ये हैं सबसे आगे

आपको एक शख्स के बारे में बताते हैं जिन्होंने घर से बाहर एक कदम नहीं रखा लेकिन सम्मानित होने लिए वे लड़ भी पड़ते हैं। यह अगर किसी और के सम्मान की बात सुन लें तो जिसने दूसरे को सम्मानित किया है ये उनसे झगड़ने लगते हैं। कहीं-कहीं तो इन्होंने हद पार कर दी। यह अपना सर्टिफिकेट, तम्बका और शॉल लेकर खुद पहुंच गए और सामने वाले से खुद को जबरदस्ती सम्मानित करवा के फोटो करवा ली।

समझ यह नहीं आता कि जिन लोगों ने लॉकडाउन के समय दिन-रात काम किया उन में से केवल 1-2 लोग ही सम्मानित हुए। पर जिन्होंने बैठ के मुफ्त की रोटियां तोड़ी हैं, उनको रोज़ कहीं न कहीं से सम्मानित करके कोरोना वॉरियर का खिताब दिया जा रहा है। इन में से किसी को वॉरियर का असल मतलब भी पता है क्या होता है? जो अपनी मर्ज़ी से खिताब बांट रहे हैं क्या उन्होंने यह भी चेक किया कि जिनको हम सम्मानित कर रहे हैं इन्होंने सच में कौन सा ऐसा काम किया है कि इनको सम्मान मिले?

नहीं भाई नहीं, क्योंकि ये नया फैशन है। सम्मानित करो, सम्मानित हो, फ़ोटो खिंचवाओ, सोशल मीडिया पर डालो, अखबारों में तस्वीर के साथ ख़बर लगवाओ और वाहवाही लूटो।

जो बेचारे रात-रात तक काम करके अपनी जान खतरे में डालते रहे उनको क्या मिला? कुछ नहीं। क्योंकि ज़माना बस भेड़-चाल और दिखावे का है। इंसानियत का नहीं!!!

6 COMMENTS

  1. Very nice all the lines us very nice in Chandigarh Corona patient se jiyada Corona worrier hai or ye Roz bd rahe hai……

  2. दिव्या जी हरे कृष्णा आपने जो यह लेख लिखा है कोरोना वारियर्स के तौर पर ऐसे लोगों को सम्मानित किया जा रहा है जो बिल्कुल भी घर से बाहर नहीं निकले मैं आपके इस लेख से पूरी तरह से सहमत हूं और इसका समर्थन करता हूं मैं और मेरी धर्मपत्नी रुबी गुप्ता कोरोना महामारी लॉकडाउन कर्फ्यू के दौरान रात के 10:00 बजे तक गरीब मजदूर कॉलोनी बस्तियों में भोजन उपलब्ध करवाते रहें लेकिन आज तक हमें तो किसी ने भी याद नहीं किया वारियर सर्टिफिकेट दे देना तो दूर की बात है यह मनचाहे ऑनलाइन जिसको दिल करता है बे मतलब आलू गाजर बैंगन की तरह बांटे जा रहे हैं वॉरियर्स जैसे महत्वपूर्ण शब्द का घोर अपमान किया जा रहा है और इसकी महत्ता खत्म की जा रही है

    • सही कहा सर। वॉरियर शब्द का अपमान हो रहा है। साथ ही उन लोगों का अपमान हो रहा है जिन्होंने सच में रात-रात तक काम किया, लोगों की सेवा की। ऐसे निकम्मे लोगों को अवॉर्ड, सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया जा रहा है जो इसके लायक तक नहीं है।

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