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हम तेरे हैं… हम तेरे भी हैं.. और तेरे भी…..

आज एक बार फिर हम हाज़िर हैं एक नया किस्सा लेकर। आज का किस्सा एक ऐसे पत्रकार का है जो सबके साथ मुँह पर बहुत मीठा है लेकिन पीठ पीछे सबकी चुगली यहां वहां करता है। यानी मुँह पर हम तेरे हैं लेकिन असल में हम सिर्फ़ खुद के ही हैं। होते तो सभी वैसे ऐसे ही हैं आजकल लेकिन आपको कैसा लगेगा अगर आपको पता चले कि आपकी छोटी से छोटी बात आपके किसी दुश्मन या कंपटीटर तक चंद मिनटों में पहुंचाई जा रही है?

कुछ लोग मुँह पर इतने सच्चे और मीठे बनते हैं जिससे आपको लगेगा कि ये कितने अच्छे हैं और मेरा कितना भला सोचते हैं। लेकिन अकसर ऐसे ही लोग दिखावा कर रहे होते हैं। एक ऐसे ही पत्रकार के बारे में बात हो रही है जो आपके पास बड़ी फ़िक्र से आएंगे और आपसे सब कुछ जान लेंगे और आपको यह भरोसा भी दिलाएंगे कि अगर आपको कोई समस्या है तो क्या करना है। पर आपको नहीं पता बाहर जाते ही आपकी बातें कहाँ जा रही हैं किसको जा रही हैं।

सबसे मज़े की बात यह है कि अगर यह सब सामने भी आ जाए कि आपकी बातें इधर की उधर हुई हैं तो यह वो ही शख्स होंगे जो आगे से आकर कहेंगे “अच्छा? ये कैसे हुआ? किसने किया होगा ऐसा? गलत बात है।” आपको शक भी नहीं होगा कि यह शख्स आपकी चुगली करता है और चुगली भी ऐसी कि आपको नुकसान हो और दूसरे का फायदा।

चलो यह भी बता देते हैं कि इन पत्रकार शख्स को सभी जानते हैं और अकसर रोज़ मिलते भी हैं। यह आपको दिखाएंगे कि आपका काम कर रहे हैं, आपका फ़ायदा कर रहे हैं, आपकी परवाह कर रहे हैं लेकिन यह सब इस लिए है कि इनको सबकी गुड बुक्स में रहना है। अपनी एक अच्छी ईमेज बना कर रखनी है। कोई पीआर हो, पत्रकार हो,फोटोग्राफर हो… हर किसी की सारी जानकारी रखना इनका काम है ताकि आगे चुगली कर सकें। किसी को भी अगर किसी के बारे में कुछ उगलवाना हो तो बस इनसे संपर्क करे।

अगर किसी को समझ आ जाए कि ये उसकी बातें चाहे पर्सनल हो, या प्रोफेशनल इधर की उधर कर रहे हैं, तो मुकरने में भी इनका कोई जवाब नहीं। ये ऐसे पेश आएंगे जैसे इन्होंने वो सब पहली बार सुना हो। ऐसे लोगों से बहुत ज़्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है जो अपने मज़े या चुगली के लिए किसी का नुकसान करने से भी बाज़ नहीं आते हैं। लेकिन ऐसे लोगों की पहचान कैसे हो?

सबसे पहले लोगों को उतना ही बताएं जितना जरूरी हो। दूसरा हमेशा ध्यान रखें कि आप किसको किसके बारे में क्या बोल रहे हैं और घूम फिर कर आप तक क्या पहुंच रहा है। अंत में हर शरीफ़ दिखने वाला या मीठा बोलने वाला आपका दोस्त नहीं है।

मैंने भी आजमा कर ही सीखा है कि यह मीडिया है साहब… यहां अकसर कामकाजी रिश्ते बनते हैं.. यारियां नहीं। काम समाप्त, अब आप नहीं प्रयाप्त!