मैंने घर से बाहर जा कर जो देखा,
फकीर गीत गाता चला जा रहा था,
यह दुनिया है फानी, नहीं किसी की,
गा गा के सबको समझा रहा था।
यहां जो भी आए वो चला जाए,
जितनी लिखी है वो काट जाए,
ये घर नही तेरा, है दुनियां सराय,
बात पते की वो समझा रहा था।
दौलत बड़ाने से कुछ ना मिलेगा,
चिंता बढ़ेगी, ना आराम मिलेगा,
सब कुछ यहां का यहीं पर रहेगा,
लालच छोड़ो कहे जा रहा था।
मालिक ने तुमको इंसान बनाया,
कर्मो ने तुमको है शैतान बनाया,
माटी के हो पुतले माटी में मिलोगे,
अहंकार छोड़ो वो गाए जा रहा था।
दुनिया में रह के कर्म अच्छे करलो,
दुआओं से अपनी झोलियां बरलो,
खाली हाथ आए खाली हाथ जाना,
कर्म साथ जाएंगे वो बतला रहा था।
मैंने घर से बाहर जाकर जो देखा,
फकीर गीत गाता चला जा रहा था,
यह दुनियां है फानी, नही किसी की,
गा गा के सबको समझा रहा था।
-बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़