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“दर्द में दिल्ली”

नाम है मेरा दिल्ली मैं हूँ भारत की शान,
राजधानी भारत की कहते मुझको महान।
मैं अपनी गाथा चलो आज तम्हें सुनाऊं,
ज़ख्मों को अपने किस किस से छुपाऊं।
लाल किले के ऊपर जब तिरंगा लहराए,
शान दिल्ली की में तब चार चांद लग जाएं।
भारत की आज़ादी दिवस पर प्रधानमंत्री ओर
गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति आ झंडा लहराएं।
कितने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों को जाते देखा,
कितनी ही सरकारों को मैंने बनते ओर गिरते देखा।
हर बार यहां चुनावों के प्रचारों को होते देखा,
नेताओं के वारों/ पलटवारों को भो होते देखा।
पार्लियामेंट में आपस में नेताओं को लड़ते देखा,
आतंकियों का पार्लियामेंट पर हमला होते देखा।
चूनावों में नेताओं को जनता से वादे करते देखा,
वादे ना पूरे करने पर ख़ूब बहाने बनाते भी देखा।
महात्मा गांधी ने आज़ादी पाने के लिए धरने लगाए,
अब तो कोई ना कोई नेता धरने पर बैठा नज़र आए।
गाड़ियों के बढ़ते शोर से यहां प्रदूषण बढता जाए,
ज़हरीली गैसों से लोग ठीक तरह सांस ना ले पाएं।
नेता काम पर कम भाषणों ओर टीवी पर नज़र आएं,
एक दूसरे की टांग ये खींचें मेरा विकास नहीं कर पाएं।
बृज किशोरे भाटिया,चंडीगढ़