व्रत कब रखें ?

पंचांगानुसार गुरुवार  को प्रातः सप्तमी 6 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी और अष्टमी आरंभ होकर शुक्रवार की प्रातः 5 बजकर 01 मिनट तक रहेगी। इस प्रकार अहोई का व्रत 12 अक्तूबर को अधिक सार्थक  होगा। इस सायं चंद्र बहुत देर से उदय होगा अतः सूर्यास्त के बाद जब तारे दिखते हैं तभी पूजा आरंभ की जाती है।

पूजा का मुहूर्त- गुरुवार 

सायं – 17.50 से 19.05 तक

क्या है अहोई अष्टमी ?

करवा चौथ के चार दिन बाद और   दीपावली से एक सप्ताह पूर्व पड़ने वाला यह व्रत, पुत्रवती महिलाएं ,पुत्रों के कल्याण,दीर्घायु, सुख समृद्धि के लिए निर्जल करती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सायंकाल घर की दीवार पर 8 कोनों वाली एक पुतली बनाई जाती है। इसके साथ ही स्याहू माता अर्थात सेई तथा उसके बच्चों के भी चित्र बनाए जाते हैं। आप अहोई माता का कैलेंडर दीवार पर लगा सकते हैं।पूजा से पूर्व चांदी  का पैंडल  बनवा कर चित्र पर चढ़ाया जाता है और दीवाली के बाद  अहोई माता की आरती करके उतार लिया जाता है और अगले साल के लिए रख लिया जाता है। व्रत रखने वाली महिला की जितनी संतानें हों उतने मोती इसमें पिरो दिए जाते हैं। जिसके यहां नवजात शिशु हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो , उसे अहोई माता का उजमन अवश्य करना चाहिए।

विधि

एक थाली में सात जगह 4-4 पूरियां रखकर उस पर थेाड़ा थोड़ा हलवा रखें। चंद्र को अर्ध्य दें । एक साड़ी ,एक ब्लाउज,व कुछ राशि इस थाली के चारों ओर घुमा के , सास या समकक्ष पद की किसी महिला को चरण छूकर उन्हें दे दें।

वर्तमान युग में जब पुत्र तथा पुत्री  में कोई भेदभाव नहीं रखा जाता , यह व्रत सभी संतानों अर्थात पुत्रियों की दीर्घायु के लिए भी रखा जाता है।

पंजाब ,हरियाणा व हिमाचल में इसे झकरियां भी कहा जाता है।

अहोई अष्टमी व्रत कथा 

प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहूकार की एक बेटी भी थी, जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई, तो ननद भी उनके साथ हो ली।

साहूकार की बेटी, जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर साही अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से साही का एक बच्चा मर गया।

साही के बच्चे की मौत का साहूकारनी को बहुत दुख हुआ। परंतु वह अब कर भी क्या सकती थी, वह पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ समय बाद सहूकारनी के एक बेटे की मृत्यु हो गई। इसके बाद लगातार उसके सातों बेटों की मौत हो गई। इससे वह बहुत दुखी रहने लगी।

एक दिन उसने अपनी एक पड़ोसी को साही के बच्चे की मौत की घटना सुनाई और बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। यह हत्या उससे गलती से हुई थी, जिसके परिणाम स्वरूप उसके सातों बेटों की मौत हो गई। यह बात जब सबको पता चली, तो गांव की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा दिया।

वृद्ध औरतों साहूकार की पत्नी को चुप करवाया और कहने लगी आज जो बात तुमने सबको बताई है, इससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। इसके साथ ही, उन्होंने साहूकारनी को अष्टमी के दिन भगवती माता और साही और साही के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करने को कहा।

उन्होंने कहा कि इस प्रकार क्षमा याचना करने से तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे और कष्ट दूर हो जाएंगे। साहूकार की पत्नी उनकी बात मानते हुए कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखा व विधि पूर्वक पूजा कर क्षमा याचना की। इसी प्रकार उसने प्रतिवर्ष नियमित रूप से इस व्रत का पालन किया। जिसके बाद उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परंपरा चली आ रही है।

मदन गुप्ता सपाटू , ज्योतिर्विद्, चंडीगढ़ 

98156-19620

 

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