बाहर तो सूरज निकला है पर दिलों में अंधेरा है,
खुदगर्ज़ी ने पहन के चादर किया यहां बसेरा है।

देश की सीमाओं को आतंकवादियों ने घेरा है,
देश के अंदर अब भी कुछ गद्दारों का डेरा है।

भारत में कुछ रहनेवाले, भारत का ही खाते हैं,
नफरत के बीज वो बोएं, अलगाववादी वो कहलाते हैं।

देश में कुछ ऐसे नेता हैं जो हर बात पर विरोध दिखाते हैं,
भारत विरोधी नारे लगाने वालों के हमदर्द वो कहलाते हैं।

कश्मीरियों की रक्षा के लिए सैनिक जो भेजे जाते हैं,
दुश्मन की गोली भी झेलें, कश्मीरियों के पत्थर भी खाते हैं।

छतीसगढ़ में नक्सलियों ने बर्बरता का तांडव दिखाया है,
तभी तो सुकमा हमले में 25 सैनिकों ने वीरगती को पाया है।

कुर्सी ओर दल की साख ना जाए सैनिक चाहे मरते जाएं,
आपसी फूट ना ले डूबे सबको अच्छा होगा यह समझ पाएं।

70 वर्ष पहले भारत ने गुलामी की जंजीरों से मुक्ति पाई,
कितने बलिदानों को देकर भारत में फिर आज़ादी आई।

चलो सभी भारत वासी सब मिलकर ये कसम खाएं,
कंधे से कंधा मिलाकर चलें आतंकवाद मार भगाएं।

शहीद सैनिकों का बलिदान व्यर्थ कभो ना जाएगा,
भागेगा हर आतंकवादी भारत को तोड़ ना पाएगा।

शहीदों की माताओं ओर बच्चों के ओर आँसू अब ना बह पाएं,
देश के गद्दार, अलगाववादी ओर आतंकी ना बख्शे अब जाएं।

बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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