यारों हम भी बन गए पीआर

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शहर में ऐसी जोड़ी तो घूम ही रही है जो खुद को पत्रकार बोलकर गिफ्ट और खाना खाने के लिए धमक पड़ते हैं। फ़र्ज़ी पत्रकार बनकर गिफ्ट और खाना तो आ रहा था पर पैसा नहीं मिल पाया इसलिए यह जोड़ी अब पीआर में उतार आई है। कमाल की बात यह है कि सामने केवल एक व्यक्ति ही आता है क्योंकि दूसरे को यह डर है कि अगर मैं सामने आया तो शहर के सभी पीआर मुझे इवेंट में बुलाना बंद कर देंगे। अब गिफ्ट और खाने पर खुद लात थोड़ी न मारनी है।
कॉपी पेस्ट से फ़र्ज़ी पत्रकार बनकर घूमना तो आसान था पर पीआर का काम करने के लिए प्रेस नोट बनाना और अच्छी कम्युनिकेशन स्किल्स होना अनिवार्य है। कब तक दूसरों के भरोसे प्रेस नोट बनवा कर काम किया जा सकता है?
2-3 कांफ्रेंस करवा कर जोड़ी ने एक बार फिर खुद को सेल्फ-डिक्लेअर पी आर घोषित कर दिया है। इनके कैरियर में हर चीज़ सेल्फ-डिक्लेअर ही होती है। आपको यहां तक बता दें कि जोड़ी के साथ हर 2-3 महीने में एक नया शख्स जुड़ जाता है जो इनको मीडिया की वो जानकारी देने का काम करता है जिसे यह अपने बलबूते पर कभी नहीं जान सकते।
जोड़ी ने अपनी टीम बढ़ाने की भी काफी कोशिश की लेकिन 1-2 हफ्ते के अंदर ही लोगों को इनके फर्ज़ीवाड़े का खुलासा हो जाता था और वो खुद इनसे अलग हो जाते थे।

नाक भी है कुत्ते से तेज़

(यह एक मुहावरा है, कृपया करके इसे किसी की बेइज़्ज़ती करने का तरीका समझने की गलती न करें,)

जोड़ी की नाक कुत्तों से भी तेज़ है। यह सूंघ कर ही बता सकते हैं कि किस इवेंट में गिफ्ट और खाना मिलेगा और किस में नहीं। वैसे यह टैलेंट कुछ और फ़र्ज़ी पत्रकारों में भी है। इनको पता चल जाता है कि किस इवेंट में जाने से फायदा होगा और किस में जाने से केवल इनका वक़्त बर्बाद होगा। आखिर इनको खबर से नहीं बल्कि खाने-पीने से मतलब जो है। यह आपको कभी किसी धरना प्रदर्शन, ब्लड डोनेशन कैम्प या किसी रैली की कवरेज के लिए बुलाई गई मीडिया में नज़र नहीं आएंगे। तो आखिर ये मिलते कहां हैं? जाहिर है, फाइव स्टार होटलों और क्लब्स में। वैसे अगर धरना प्रदर्शन में भी गिफ्ट मिलना शुरू हो जाए तो ये वहां पहुंचने में देर नहीं लगाएंगे।
ब्लड डोनेशन कैम्प में खाने को तो मिलता है पर केवल उनको जो रक्तदान करते हों, अब 1 समोसे या केले के लिए ये फाइव स्टार होटलों में खाना खा कर बनाया गया अपना रक्त बर्बाद थोड़ी न करेंगे।

पत्रकार बनकर लोगों को बेवकूफ बनाना हो या पीआर बनकर जरूरतमंद लोगों को कवरेज का झांसा देना हो, जोड़ी है बड़ी माहिर।
आश्चर्य की बात यह है कि मुझसे (दिव्या आज़ाद) से पहले इनके खिलाफ खुलेआम बोलने की हिम्मत किसी ने नहीं जुटाई, जबकि सभी असली पत्रकार और माहिर पीआर इनसे बेहद परेशान हैं।

आलम यह हुआ है कि पीआर तो अपने इज़्ज़त की लाज रखते हुए सामने आए हैं और उन्होंने इस फ़र्ज़ी जोड़ी और इनके जैसे ठग लोगों को अपने इवेंट में बुलाना बंद कर दिया है। उनका यह कदम सराहनीय है।

अब परीक्षा पत्रकारों की है, वे इन फर्ज़ीवाड़ा करने वाले नकली पत्रकारों को मीडिया का नाम बदनाम करने से रोकते हैं या इनको और बढ़ावा देते हैं।

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