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“उधार”

बुरी लत लग जाए जिसे लेने की उधार,
बड़ी मुश्किल से होती है नैया उसकी पार।
उधार लेता है जब तक कोई देने को तैयार,
फिर मुख फेरें उससे, लौटाना हो जब उधार।
    दिन कैसे कटेंगे अब, मिलता नही उधार,
    नया शिकार ढूंढेंगे, पानेको कुछ उधार।
    मासूम चेहरा बनाके डालेंगे ये आचार,
    उधार देने के वास्ते, हो जाए कोई तैयार।
 उधार लेते समय दिखाएंगे ये शिष्टाचार।
 चूना लगाकर दोस्तो को भागेंगे ये यार।
उधार जब तक मिले, दिखाएंगे ये प्यार,
मांगोगे वापीस, ना देंगे अपना दीदार।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़