आज हम आपको कुछ ऐसे पत्रकारों के बारे में बताने जा रहे हैं जो एक जमाने में किसी न किसी अखबार से जुड़े हुए थे और फिर उन्होंने अपने-अपने पोर्टल शुरू कर लिए। लेकिन जब उनको पोर्टल से वो नाम नहीं मिल पाया तो वे फिर किसी अख़बार से जुड़ गए।
लेकिन जिनका मन काम करने के बजाए केवल शॉर्टकट से शौहरत हासिल करने का हो वे कहीं नहीं टिक सकते हैं। ऐसा ही कुछ इनके साथ हुआ। अख़बार से जुड़े तो हैं लेकिन अख़बार में एक भी ख़बर नहीं लगती है।
तो अब नाम तो बनाना था ही तो इन्होंने साथी पत्रकारों को इक्ट्ठा करना शुरू कर दिया। जो इनकी सोच से सहमत नहीं होता था उसको इन्होंने उल्टा सीधा बोलना शुरू कर दिया। सबको साथ लाने का कोई मकसद नहीं था इनका बस प्रधान-गिरी करनी थी। चलो वो भी शुरू हो गई।
अब? अब क्या? प्रधान-गिरी भी तब ही सफल होती है जब कोई आपको जानता हो, आपको कुछ समझता हो। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा था। तो नया तरीका निकाला। बिना मतलब के मुद्दों में फस कर तूल देना। ऐसा एक मौका मिला भी। एक ऐसी तसवीर को लेकर बवाल बनाया गया जिसको गलत तरीके से पेश किया जा रहा था। चलो मुद्दा तो मिला था न! बहुत था पॉपुलर होने के लिए।

अब इस मुद्दे को लेकर बयान बाज़ी शुरू कर दी। साथी- पत्रकारों को भड़काना शुरू किया। कुछ पत्रकारों के बारे में उल्टा बोला, यहां तक कि लिखा भी। लेकिन जब मामले की तह तक बात निकल कर आई तो पता चला कि गेम सिर्फ पॉपुलर होने तक का नहीं था…. मामला पैसों का भी था। एक बेमतलब के मुद्दे को हवा देने के लिए इनको पैसे मिले थे। अब जब कहीं नाम नहीं बन रहा था तो इन्होंने सोचा चलो पैसा तो आये हाथ में।
इनको लगा कि प्रधान-गिरी, पत्रकारों के हितों की बड़ी-बड़ी बातें करके, कुछ पत्रकारों को अपने साथ रख लेने से हम पॉपुलर भी बनेंगें और काफी माल भी लूट लेंगे…. लेकिन शायद ये भूल गए थे कि ऐसे कभी पॉपुलर नहीं बनते। आपका काम, आपकी अपने काम को लेकर निष्ठा और निस्वार्थ भाव से किए हुए कार्यों से ही सच में पॉपुलर हुआ जा सकता है।
लगता है ऐसे लोगों के ये समझाने की कुछ ज़्यादा ही आवश्यकता है कि पैसे के लिए कभी अपने प्रोफेशन, अपने ज़मीर को बेचना नहीं चाहिए। साथ ही यदि कोई आपकी सोच से सहमत नहीं है तो वह गलत नहीं है। जिस दिन आप अपना मतलब छोड़ साथियों के हितों के बारे में दिल से सोचेंगे उस दिन सब आपके साथ होंगे, किसी प्रधान-गिरी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। पर कुछ लोगों को पॉपुलर होने के लिए शॉर्टकट की ऐसी आदत पड़ गई है कि जाती ही नहीं है।
