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“तौबा गर्मी”

गर्मियों के मौसम आने से जैसे गर्मी बढ़ जाती है,
हल्के सूती कपड़ों की वैसे कीमत बढ़ जाती है।
 कोट स्वेटर सब के तन से उतरने लगते हैं,
 ढके हुए शरीर के अब अंग दिखने लगते हैं।
गीज़र, हीटर ओर कनवेक्टर छुटि चले जाते हैं,
ऐ सी, पंखे ओर कूलर सब घरों में नज़र आते है।
 सूर्य देव भी सुबह 5 बजे आ कर सभको जगाते है,
 सर्दी में 9 बजे जो उठते अब 5 बजे उठ जाते है।
सर्दियों की अपेक्षा गर्मी के दिन लम्बे तो होते हैं,
लोग रातों में कम पर दिन में ही ज़्यादा सोते हैं।
आधी रात के वक्त जब कभी बिजली गुल हो जाती है,
नींद से उठे लोगों को रातभर नींद कहां तब आती है।
मारे पसीने से तर लोगों का हाल बुरा हो जाता है,
खीझ उठते सभी जब नल में पानी नही आता है।
तौबा गर्मी हाए तौबा गर्मी अब हर कोई चिल्लाता है,
अमीरों को ऐ .सी .कईयों को पंखा नहीं मिल पाता है।
जिनके सर पर छत नहीं वोह रोज़ खुले में सोते हैं,
बिजली गुल हो जाने पर भी चैन की नींद सोते हैं।
तौबा गर्मी कितनी बढ़ रही गर्मी हर कोई चिल्लाता है,
किसीको मिले ऐ .सी. कोई वृक्ष नीचे ही सो जाता है।
बृज किशोर भाटिया