आज हम बात करेंगे कि किस प्रकार चंडीगढ़ मीडिया से पत्रकार और पत्रकारिता लुप्त होती जा रही है। एक समय था जब पत्रकारों के कुछ नियम और मानक हुआ करते थे। उस समय पत्रकार होने पर गर्व हुआ करता था।लेकिन आज मेरी नज़र में पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नहीं रह गई है।

कुछ समय पहले एक वरिष्ठ पत्रकार की लंबे समय बाद बात हुई और इस विषय पर चर्चा हुई। उन्होंने कहा हम पत्रकार रह ही कहाँ गए हैं। सब के सब मालिकों के नौकर बन के रह गए हैं। यदि ठीक से विचार करें तो उन्होंने कितना सही कहा। अब ख़बर से ज़्यादा सबको अपना फ़ायदा दिखता है। ख़बर जनता के हित की बजाए संगठन या व्यक्तिगत हित के अनुसार छपती है। इसे तो पत्रकारिता नहीं कहते।

इसके साथ ही दूसरे नंबर पर बात करते हैं कि किस प्रकार पत्रकार मीडिया छोड़ कर जा रहे हैं या हाल ही में हमारी एक साथी द्वारा की गई आत्महत्या पर किस प्रकार सब चुप हैं। इस बारे में बात करना ज़रूरी इसलिए है क्योंकि इंसान होने के नाते हमारे बहुत से फ़र्ज़ होते हैं और साथ ही अपनी कम्युनिटी के लिए भी हमारे कुछ फ़र्ज़ होते हैं जिनसे हमें भागना नहीं चाहिए। हर बात का लेन-देन इस चीज़ से है कि मीडिया में किस प्रकार का माहौल बन गया है। हम वो लोग हैं जो दूसरों के हक के लिए लिखते, रिपोर्ट करते या खड़ते थे। लेकिन कहाँ हैं वो पत्रकार? आजकल दिख ही नहीं रहे कहीं।

हर किसी को सिर्फ खुद से मतलब होने लगा है जोकि गलत नहीं है। लेकिन हमारे प्रोफेशन को देखते हुए क्या हमें अपने खुद के लोगों के लिए कुछ नहीं करना चाहिए? माहौल इतना ख़राब हो रहा है कि कुछ तंग आकर मीडिया छोड़ जाते हैं और कोई और काम करने लगते हैं। हाल ही में हुए हादसे कि बात करें तो ट्राइसिटी के मीडिया वालों ने बिना पता किए बिना सबूत के अपनी अपनी राय दे दी। मुझे नहीं मालूम हमारे साथी ने ऐसा कदम क्यों उठाया लेकिन मुझे इतना मालूम है कि उसके जाने पर हम सबने मीडिया का और इंसान का फ़र्ज़ तक नहीं निभाया। किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा, बस पीठ पीछे चर्चा हुई कि इस वज़ह से किया होगा, उस वज़ह से किया होगा। मैंने तो किसी को उसके संस्कार के बारे में पूछते तक नहीं देखा कि हो गया है या नहीं। किसी को उसके माँ-बाप से मिलने जाने तक कि बात या इच्छा ज़ाहिर करते नहीं देखा। कैसे पत्रकार और कैसे इंसान बनते जा रहे हैं हम? कड़वा ज़रूर लग रहा होगा, पर शर्म आनी चाहिए सबको।

अब अंत में बात करेंगे कि किस प्रकार मीडिया में पत्रकार छोड़ और लोग घुस चुके हैं जिससे मीडिया में पत्रकार कम और आम लोग ज़्यादा हो गए हैं। इस विषय को उठाते हुए मुझे कई साल हो गए लेकिन सब चर्चा करते हैं, बात करते हैं, अपना गुस्सा दिखाते हैं लेकिन ऐसे लोगों को मीडिया का हिस्सा न बनने देने के लिए कदम कोई नहीं उठाता है। हर फील्ड के कुछ नियम होते हैं और उन नियमों का पालन हो रहा है या नहीं यह देखना उस फील्ड के हर प्रोफेशनल का काम होता है। हर चीज़ में टीम वर्क लगता है। कोई अकेला बदलाव नहीं ला सकता।

तो अगली बार जब आपको पहले जैसी इज़्ज़त न मिले, आम जनता मीडिया या पत्रकारों को गालियां देती सुनाई दे, लोग भरोसा न करते दिखें तो चिड़ियेगा मत। क्योंकि ऐसा आप सब खुद होने दे रहे हैं। अपने प्रोफेशन की मर्यादा को ख़राब आप सब खुद करवा रहे हैं। परिणाम भी भुगतने ही पड़ेंगे। और हाँ, देखिएगा कहीं जल्दी आप भी लुप्त न हो जाएं।

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