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“परेशान है ज़िन्दगी”

हर तऱफ एक भीड़ सी नज़र आती है
ज़िन्दगी परेशान सी नज़र आती है।
सुबह नहा धोकर काम पर जो निकलता है,
घर लौटे तो लीपा कालिख में दिखता है।
वक्त पर घर से चला जो ट्रेफिक में रोज़ फंस जाता है,
भीड़ से लड़ता बड़ी मुश्किल से आफिस पहुंच पाता है।
बॉस बिगड़ता है उस पर रोज़ दफ्तर लेट आने पर,
घर वापस देर से पहुंचे तो नाराज़ बीवी को पाता है।
बढ़ती कीमतों ने सबकी कमर तोड़ डाली है,
घर में रौशनी नहीं कहने को तो दीवाली है।
40 की उम्र में ही अब तो बूढ़े नज़र आने लगे,
लाली कहां रही चेहरों पर वो भी मुरझाने लगे।
बच्चों की फीस/ डोनेशन्स इतने ज़्यादा हैं,
आमदन कम है और खर्चे कितने ज़्यादा हैं ।
खर्चे ओर कम करके बच्चों को तो पढ़ाना है,
कम से कम इनको तो आत्मनिर्भर बनाना है।
मध्य वर्ग और जनरल कैटेगरी पर क्यों मार है,
उनके बच्चों पर हो रहा ये कैसा अत्याचार है।
रिज़र्व केटेगरी को मिला आरक्षण हथियार है,
जनरल कैटेगरी पर हो रहा ये कैसा संहार है।
भारत देश में जब प्रतिभा का ना सम्मान होगा।
देश और पिछड जाएगा, फिर ना विकास होगा।
बृज किशोर भाटिया