जो व्यक्ति अपने पितृ ऋण से मुक्त होना चाहता है वह श्राद्ध अवश्य करें : पं. ईश्वर चंद्र शास्त्री 

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चंडीगढ़

11 सितंबर 2019

दिव्या आज़ाद

अश्विन मास के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन पितृ पक्ष के नाम से विख्यात हैं। इन पन्द्रह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं। ये कहना हैं देवालय पूजक परिषद्, चंडीगढ़ के अध्यक्ष व पंडित ईश्वर चंद्र शास्त्री जी का। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। अत: जो व्यक्ति अपने पितृ ऋण से मुक्त होना चाहता है वह श्राद्ध अवश्य करे। यदि किसी की मृत्यु पूर्णिमा के दिन होती है तो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर उसका श्राद्ध करें। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ भी दिया जाए या किया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर तक प्रसन्न रहते हैं। पितृ पक्ष में श्राद्ध तो मुख्य तिथियों को ही होते हैं किंतु पितरों के निमित्त तर्पण प्रतिदिन किया जाता है। देवताओं तथा ऋषियों को जल अंजली देने के अनंतर पितरों को जल दिया जाता है जिससे उनको तृप्ति होती है। यदि किसी की मृत्यु तिथि का पता ना हो तो अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध करें। यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि है तथापि आश्विन मास की अमावस्या पितरों के लिए परम फलदायी होती है। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को पिंडदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु ,पुत्र ,पुत्र , यश ,स्वर्ग पुष्टि ,पुष्टि ,लक्ष्मी ,सुख, साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है ।इतना ही नहीं पितरों की कृपा से ही श्राद्धकर्ता को सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य ,राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शास्त्री जी, जो से. 28 स्थित प्राचीन शिव खेड़ा मंदिर के प्रधान पुजारी भी हैं, ने आगे बताया कि श्राद्ध के दिन किसी भी शुद्ध ब्राह्मण को घर पर बुलाकर सम्मान पूर्वक उनके चरण धोएं। उनको स्वादिष्ट भोजन करवाएं तथा भोजन कराने के बाद फल, वस्त्र, दक्षिणा इत्यादि देकर सम्मानपूर्वक घर से विदा करें। श्राद्ध में आवश्यक वस्तुएं गाय के दूध से बनी खीर, कुशा, तिल, गंगाजल आदि हैं।
उन्होंने बताया कि वैसे तो श्राद्ध का समय दोपहर 12:00 बजे के बाद ही होता है जो कि शास्त्रीय विधि के अनुसार सही है। परंतु यहां शहर में सब लोग प्रातः काल में ही अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन करवाते हैं। इस परिस्थिति में तिथि का विचार अवश्य करें। इस बार भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शुक्रवार ,13 सितंबर को 7:36 प्रातः प्रारंभ होगी एवं 14 सितंबर, शनिवार को प्रातः 10: 03 तक रहेगी। जो व्यक्ति पूर्णिमा का श्राद्ध करना चाहते हैं वो इस समय के दौरान ही अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध करें। प्रतिपदा का श्राद्ध 15 सितंबर रविवार को 12:24 तक संपन्न करें। 16 सितंबर सोमवार को द्वितीय का श्राद्ध संपन्न करें। पितृपक्ष 15 दिन का होता है अबकी बार पितृपक्ष में 15 की बजाय 14 दिन श्राद्ध होंगे अर्थात एक श्राद्ध कम हो जाएगा। त्रयोदशी एवं चतुर्दशी  एक ही दिन 27 सितंबर शुक्रवार को पड़ेगी। 28 सितंबर शनिवार को अमावस्या अर्थात सर्वपितृ श्राद्ध होगा इसी दिन पितरों का विसर्जन भी होगा।

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