चण्डीगढ़
28 फरवरी 2022
दिव्या आज़ाद
केंद्रीय आर्य सभा द्वारा आयोजित महर्षि दयानंद जन्मोत्सव धूमधाम से संपन्न हो गया है। दयानंद चेयर, पंजाब यूनिवर्सिटी के चेयरमैन प्रोफेसर वीरेंद्र अलंकार ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती तत्व और सच्चाई की बात करते थे। वे कहते थे कि जो बात सच्ची है उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। इसी कारण वे शास्त्रार्थ में सदा विजयी रहे। उन्होंने कहा कि वैदिक विज्ञान पर शोध पत्र लिखने वाले अधिकतर पौराणिक ही हैं। ऋषि परंपरा के अनुसार ही जो वेद पढ़ते हैं उनमें तर्क शक्ति होती है।
ईश्वर के पास अनंत विद्याएं हैं। इन्हें जानने से मुक्ति का मार्ग और सुख मिलेगा। ईश्वर के पास शक्ति है और उसकी सार्थकता प्रस्तुति में होती है। ईश्वर की शक्ति को देखने के लिए बुद्धि के दरवाजे खोलने की आवश्यकता है। ईश्वर को भौतिक वस्तुओं का उपहार भेंट करने की आवश्यकता नहीं है। यह सारी वस्तुएं ईश्वर के द्वारा बनाई गई हैं। योग और ध्यान साधना व्यक्ति की स्वयं व्यक्ति की होती है। इसे हम ईश्वर को अर्पित कर सकते हैं। तर्क की भाषा में स्वामी दयानंद सरस्वती शत- प्रतिशत खरे उतरते हैं इसलिए वे प्रासंगिक हैं। सारा दर्शन ओजस्वी और अद्भुत है। जैवीर वैदिक ने अपने व्याख्यान के दौरान कहा कि वेद पढ़ने से पूर्व पृष्ठभूमि को मजबूत करने के लिए सत्यार्थ प्रकाश का अध्ययन करना होगा। आचार्य शिव कुमार शास्त्री ने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती के आगमन से पूर्व संस्कृति तहस-नहस हो रही थी। उन्होंने स्वतंत्रता का शंखनाद बजाया। साधना और आत्मनिरीक्षण के कारण लोग उनके दिखाए मार्ग पर चले। महर्षि दयानंद सरस्वती जी पतित का उद्धार करने आए थे। उन्होंने मनुष्य को देवता बनाने के लिए 16 संस्कार दिए। ईश्वर की सही प्रक्रिया प्रस्तुत करना दयानंद जी की ही देन है। वे सदा वेद की ही बात करते थे। वेद सदा नवीन रहते हैं। कार्यक्रम के दौरान शोभा यात्रा पर सुंदर झांकियां प्रस्तुत करने के लिए डीएवी शिक्षण संस्थाओं और आर्य समाजों को सम्मानित भी किया गया। समाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए उषा गुप्ता, धर्मवीर बत्रा, कमल कृष्ण महाजन और रघुनाथ राय आर्य को सम्मानित किया गया।