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कंधा मेरा, बंदूक तुम्हारी… फिर भी पूछते हो किसकी बारी?

आज ऐसे लोगों पर चर्चा होगी जो पीठ पीछे मज़ें लेते हैं और सामने आकर लगाव ज़ाहिर करते हैं। बता दें कि आज का आर्टिकल किसी भी एक व्यक्ति पर नहीं है बल्कि उन सब पर है जो दूसरों का सहारा लेकर वार करते हैं। दूसरे तरीके से कहें तो हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और।

आज के आर्टिकल में बात होगी उन सब लोगों की जो मुझे हर वक्त यह पूछते हैं कि इस बार कुछ लिखा नहीं? पहली बात यह कि मैं यह आर्टिकल इसलिए नहीं लिखती कि मुझे कोई मज़ा लेना है या किसी को बदनाम करना है। इस आर्टिकल को लिखने का सिर्फ़ एक ही मकसद है कि सामने वाले को पता चल जाए कि वो कोई गलत चीज़ कर रहा है और लोग उस चीज़ को नोट कर रहे हैं। अभी भी समय है चीज़ें सुधारने का। हां, बहुत से आर्टिकल व्यंग्य या मज़ाक वाले शब्दों के तौर पर लिखे जाते हैं ताकि किसी का दिल न दुखे। क्योंकि मेरा मकसद ऐसा करना बिलकुल भी नहीं है।

अब हर बार पूछने वालों पर आते हैं। उनको जानने में बड़ी दिलचस्पी है कि मैंने आर्टिकल क्यों नहीं लिखा। न तो मैं इतनी फ्री हूं कि हर वक्त यही करती रहूं और न ही मैं अपने मन से बनाकर कुछ लिखती हूं। कोई गलत चीज़ मेरी नज़र में आएगी और मेरे पास समय होगा तो मैं लिख दूंगी। उसके लिए किसी की परमिशन या राय की ज़रूरत नहीं मुझे। बाकी भाई अगर दूसरों के मज़ें लेने के इतने शौंक है तो आप खुद क्यों नहीं लिख लेते हो?? हर कोई यहां मेरा कंधा इस्तेमाल करके मज़ें लेना चाहता है, बुरी मैं बनूँ और आर्टिकल लिखवा कर भी अच्छे आप बनें। ये कैसा इंसाफ़!!

आज तक न तो मैंने बताया कि किसके बारे में है आर्टिकल और न ही अपने सोर्स बताए। ऐसा इसलिए कि मुझे अपने एथिक्स पता हैं। पर उन सबको कहना चाहूंगी मैं कि आप दूसरों के खिलाफ लिखने के लिए बोलते हैं और फिर आर्टिकल आने के बाद आप उनके ही सामने जाकर मुझे बुरा भला कहते हैं कि “ओह हो आपके बारे में लिखा? कितनी ख़राब लड़की है। ऐसा नहीं करना चाहिए था उसको।” आप लोगों का कोई ज़मीर है कि नहीं??? जिन लोगों की पीठ में वार करते हो उनके सामने ही जाकर उनके लिए चिंता दिखाते हो। कंधा मेरा, बंदूक तुम्हारी, फिर भी मैं बदनाम की गोली मैंने मारी।

ऐसे बहुत से लोग हैं मीडिया में जो मुझे कहते हैं कि हमें पसंद नहीं कि तू यह कॉलम/आर्टिकल लिखती है। लेकिन जब उनको किसी के खिलाफ कुछ लिखवाना हो तो मेरा कंधा इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचाते। आखिर तुम्हें पसंद क्यों नहीं मेरा आर्टिकल लिखना? कहीं इस डर से कि तुम्हारे खुद के राज़ न खुल जाएं किसी दिन?? लेकिन फिर जब किसी ऐसे पर आर्टिकल लिखवाना हो जिसको आप पसंद नहीं करते हैं तो मेरा कॉलम पसंद कैसे आ जाता है? यह कौन सा दोगलापन हुआ जो आपको लगता है मुझे समझ नहीं आएगा?

असल में तो चंडीगढ़ मीडिया बदनाम इसलिए ही है कि यहां सब एक दूसरे के मुंह पर मीठे हैं लेकिन आपके मुड़ते ही आपकी पीठ पर वार कर देते हैं। हां कुछ बहुत अच्छे लोग भी हैं लेकिन वे सिर्फ गिने-चुने हैं। एक दिन एक मीडिया वाले ने मुझसे सवाल किया था कि यह बात सच है न कि मीडिया वाला ही दूसरे मीडिया वाले का दुश्मन है?

मुझे तो वैसे कोई खास फ़र्क नहीं पड़ता कि कौन मेरी पीठ पीछे क्या बोलता है या मुझसे कितनी नफ़रत करता है। मैं मुँह पर वो ही हूँ जो पीठ पीछे हूँ। अगर मैं कुछ लिख रही हूं तो इतनी हिम्मत रखती हूं कि आपके मुंह पर वो चीज़ बोल सकूँ। नफ़रत तो आपको उनसे करनी चाहिए ना जो आपके दोस्त होकर आपके ख़िलाफ़ आर्टिकल लिखवाते हैं। सावधान तो उनसे रहने की जरूरत है जिनसे आप अपनी पर्सनल बातें करते हैं लेकिन वो अपने मज़ें के लिए उसे आगे सबको बता कर आपका मखौल बनाते हैं।

आखिर में सिर्फ इतना कि मेरा कंधा अपनी रंजिशों के लिए करने वाले वार के लिए किराए पर देने की चीज़ नहीं है। आपको किसी से तकलीफ है तो उसको सीधा बोलने की हिम्मत रखें और नहीं बोल सकते तो सहने की हिम्मत रखें। जो चीज़ सच में गलत है और सबके सामने आनी चाहिए उसके बारे में मैं जरूर लिखूंगी। लेकिन अपनी पर्सनल दुश्मनी के लिए मेरे कॉलम का सहारा लेना बंद करें। मुझे जब कुछ लिखने लायक लगेगा तो अपने आप लिखूंगी किसी को मुझे पूछना नहीं पड़ेगा कि क्या बात आजकल आर्टिकल नहीं लिखते?

अब लिख दिया ना? लगा ना बुरा? मुझे भी ऐसे ही लगता है जब सब मेरी जान खाते हैं पूछ-पूछ कर जैसे मैं आर्टिकल लिखने की नौकरी पर लगी हूँ और न लिखने पर निकाल दी जाऊंगी। मैंने कभी किसी के काम में दख़ल नहीं दिया तो आपको भी नहीं देना चाहिए।

मुझे मेरा काम पता है, मुझे मेरा काम करने दें और आप अपना करें। सब खुश!