“देश की अखण्डता पर आंच ना आए”

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15 अगस्त हो या 26 जनवरी हर वर्ष  भारतवासी इस दिन को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं। 15 अगस्त , 1947 को भारत ने अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी पाई थी और 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था जो भारत के अंदर लोकतंत्रता का प्रतीक है। 26 जनवरी को भारत के राष्ट्रपति लाल किले पर देश का तिरंगा झंडा लहराते हैं और 15 अगस्त को भारत के प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा झंडा लहराते हैं।  बहुत अच्छा लगता है की पूरा राष्ट्र टी.वी.चेनलों पर दिल्ली में हो रहे स्वतन्त्रता/गणतंत्र दिवस की परेड को देख रहा होता है । जब अमर शहीद स्मारक पर शहीदों को श्रधांजली अर्पित की जाती है तो यह दृश्य देखने के पष्चात हर भारतवासी के मन में देश के उन वीर जवानों के प्रति जिन्होंने अपने देश के लिए दुश्मन से लड़ते समय वीरगती पाई थी स्नेह और आदर के भाव जागृत हो उठते हैं ओर ह्रदय से उनका आभार प्रकट करने को मन करता।
आज की युवा पीढ़ी को ये जानने की आवश्यकता है की आज़ादी पाने के लिए कितनी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं और लोकतन्त्र की रक्षा करने के लिए अपनो/बेगानों के कटाक्ष सहने पड़ते हैं। सिर्फ 15 अगस्त ओर 26 जनवरी को लाल किले पर तिरंगा झंडा फहरा कर, शहीदों को श्रधंजलि देकर ओर देशभक्ति के गीत सुनवाकर मकसद पूरा नहीं होता क्योंकि आज़ादी बनी रहे , संविधान का मान हो और देश के तिरंगे झंडे/राष्ट्रंगाण का सम्मान बनाए रखने के लिए बहुत सी बाधाओं का मिलकर सामना करने की आवश्यकता है। युवा पीढ़ी के लिए तब ओर भी ज़रूरी हो जाता है की वह भारत के इतिहास को जानें ओर इस लिए उनको इन चंद तथ्यों से परिचित होना ज़रूरी है।
          हमारे देश के वीरसपूतों की गाथाएं इतनी रोचक हैं की उनको सुनते ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं और हमें अपनी मातृभूमि  पर गर्व महसूस होता है की इसने देश पर मर मिटने वाले इन देश भक्तों को जन्म दिया जिनके कारण सारे संसार में आज भी भारतवर्ष गर्व से खड़ा है । लेकिन भारत को खंडित करने वाले कपूतों की भी अलग दास्तान हैं जिन्होंने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए, सत्ता पाने के लिए शत्रुओं से हाथ मिलाया ओर अपने देशवासियों को गुलामी की ज़िंदगी बिताने पर मजबूर किया। लेकिन देशभक्ति की ज्योत जिन के दिलों में प्रज्वलित थी उन्होंने अपने प्राणों को न्योछवर  कर देश को आज़ाद कराने में अपना योगदान दिया। इतिहास में भारत के राजा पोरस का नाम उल्लेखनीय है जिसने सिकन्दर जैसे राजा को जो अपने आप को महान कहता था और विश्व विजेय का सपना लेकर निकला था भारत से खाली हाथ लौटने पर मजबूर कर दिया था। सिकन्दर को उस समय तक्ष शिला नरेश अंबी का साथ मिला था लेकिन पोरस की वीरता और अपने देश के प्रति उसकी निष्ठा देखकर उसका सर भी उसके आगे झुक गया था और उसको अपने ही देश से गद्दारी करने वाले राजा अंबी के प्रति घृणा और क्रोध हुआ और उसने उसे मृत्यु के घाट उतार दिया। आचार्य चाणक्य की तुलना दुनियाभर में बड़े बड़े विद्वानों के साथ की जाती है और उनके रहते ही भारत के तक्ष शिला में लोग देश विदेश से शिक्षा का अध्ययन करने के लिए आते थे। उसके बाद राजा चन्द्रगुप्त ओर उसके पोते अशोक ने भारत पर शासन किया और अशोक ने अपने शासनकाल में भारत की सीमाएं दूर दूर तक बड़ा दीं।
         अशोक के बाद भारत वर्ष छोटे छोटे राज्यों में बंट गया और इनके राजा एक दूसरे के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने लगे जिसका फायदा विदेशियों ने उठाया और उन्होंने भारत के राजाओं को आपस में लड़वाकर इस देश को जिसे कभी सोने की चिड़िया के नाम से भी जाना जाता था अपना गुलाम बनाया। मुगल शासकों ने भारत पर हमेशा अपनी बुरी नजर डाली और देश के कुछ सत्ता के लालची राजाओं ने बाहर से आए आक्रमणकारी मुगल शासकों को समर्थन दिया जिसके चलते मुगलों को भारत पर शासन करने का मौका मिल गया। देश के ग़द्दारों में राजा जयचन्द का नाम उबर कर आता है ओर देश भक्ति की मिसाल जिन राजाओं ने कायम की उनमें पृथ्वीराज चौहान, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप, शिवाजी ओर बाजीराव पेशवा की वीरता का देश आज भी लोहा मानता है । यह सब ऐसे वीर राजा थे जिन्होंने मरते दम तक मुगलों के आगे कभी झुकना स्वीकार नहीं किया और देश की आन को बनाए रखने के लिए अपने प्राणों की आहुतियां दे डालीं। मुगलों के ज़ुल्म के आगे झुकने की बजाए श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने बेटों की कुर्बानियां दी और हिंदु धर्म को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का मानना था की जंग में हिन्दू ओर मुसलमानों की पहचान करने में कई बार कठिनाई महसूस होती है क्योंकि दोनों की शक्लों से यह पता नहीं चल पाता की कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान लेकिन खालसा की वेशभूषा से हिंदुओं की पहचान हो पाएगी।
                भारत की संस्कृति ने  विदेशी शासकों को हमेशा आकर्षित किया और यह विदेशी लुटेरों ने भारत के अंदर अपने आप को पहले व्यापारी कहकर प्रवेश किया और बाद में देश के छोटे छोटे राजाओं को आपस में लड़वाकर ओर उनमे फूट डलवाकर खुद शासक बन गए और इतिहास दोहराता है की आपसी फूट, थोड़ा लालच ओर नासमझी एक समृद्ध राष्ट को कैसे दूसरों का गुलाम बना देती है और जिसका उदाहरण है की भारत को ब्रिटीश शासकों का गुलाम बन कर रहना पड़ा। भारत में अंग्रेजों से आज़ादी की जंग का बिगुल 1857 में बजा लेकिन भारत को आज़ाद होने में कई साल लग गए और अंत 15 अगस्त, 1947 को भारत ने आज़ादी पाई। अंग्रेजों के विरुद्घ लड़ाई में लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानियां दीं लेकिन इतिहास में जिनका विशेष तौर पर वर्णन किया गया है उनमें से महारानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे का नाम लिया जाता है जिन्होंने आज़ादी के जंग की चिंगारी जलाई। इस चिंगारी को ज़िंदा रखने वाले ओर देश की आज़ादी के लिए खुद को कुर्बान करने वालों में शामिल होने वालों में से शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव,लाला लाजपतराय, उधम सिंह, करतार सिंह सराभा ओर नेताजी सुभाषचंद्र बोस, वीर सावरकर आदि ऐसे देश भक्त थे जिन्हों के आगे पूरा भारत नतमस्तष्क है।
        देश को आज़ाद करवाने में बापू जी यानी की महात्मा गांधी जी का नाम आदर से लिया जाता है क्योंकि अहिंसा और सत्यग्रह का मार्ग अपनाकर उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध देश की आज़ादी की जंग में अपना बहुमूल्य योग दान दिया।
अंग्रेजों ने भारत को आज़ादी तो दी लेकिन हिन्दू मुसलमानों को आपस में बांटने के बाद ही उन्होंने भारत छोड़ा। सत्ता को पाने के लालच में उस वक्त के नेताओं ने देश के बंटवारे को स्वीकार किया और देश के दो टुकड़े कर डाले यानी एक को हिन्दोस्तान ओर दूसरे को पाकिस्तान का नाम मिला। तब से लेकर आज तक इन दोनों देशों के रिश्ते अच्छे नहीं बन सके क्योंकि आज़ादी के बाद ही पाकिस्तान ने कश्मीर का एक हिस्सा आक्रमण कर हथिया लिया और जो आज तक उसके कब्जे में है। डाक्टर भीम राव अम्बेडकर ने भारत का संविधान लिखा जो 26 जनवरी, 1950 को पूरे देश में लागू किया गया जिसमें भारत के अंदर गणतंत्र राज्य की स्थापना हुई।
          कुछ अलगाववादी नेता और कुछ अन्य नेता कश्मीर के मुद्दे को लेकर राजनैतिक रोटियां सेंकने का काम कर रहे हैं और इसी वजह से कश्मीर का मुद्दा गले में फांस की तरह अटका पड़ा है और संविधान की धारा 35 को हटाने के मामला अब उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन पड़ा हुआ है। देश की युवा पीढ़ी को आगे आना होगा और ऐसे किसी काम को करने में या ऐसे काम में किसी का साथ देने से परहेज़ करना होगा जिससे देश के मान को ठेस पहुंचती हो। आज़ादी की कीमत जानें, सत्य को परखने की कोशिश करें। संविधान का मान रखें और आपको जो मौलिक अधिकार दिए गए हैं उनका अनुचित उपयोग ना करें क्योंकि अधिकार तब तक सुरक्षित रहते हैं जब तक हम अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करें।
             अब यह सभी देशवासियों का कर्तव्य बन जाता है की अपने देश के प्रति वफादार रहें, आपस में झगड़ने की जगह समस्याओं को सुलझाने में अपना योगदान दें और अपने देश के तिरंगे झंडे ओर राष्ट्रंगाण का सम्मान करें ताकी देश की  अखण्डता पर कोई आंच ना आए। देश को आज़ाद कराने में ऐसे लाखों लोग हैं जिन्होंने अपनी जान देश के लिए कुर्बान की ओर जिनका इतिहास में कहीं भी ज़िक्र नहीं क्योंकि उनके पूरे के पूरे परिवार देश के बंटवारे के समय मारे गए हमें उनकी याद में भी अपना शीश झुकाने की आवश्यकता है। ज़रूरत है अपने अपने व्यक्तिगत लाभ त्यागने की क्योंकि राष्ट्र के आगे हमारा जीवन कोई मोल नहीं रखता।
          देश की अखण्डता पर कोई आंच ना आए,
          तिरंगा झंडा हमेशा आसमान में लहराए।
  जय हिंद।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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