“दर्द”

0
2991
मुस्करा के कभी न कभी यूं दर्द छुपाना पड़ता है
ना चाहते हुए भी किसी को पास बिठाना पड़ता है
            वो लोग पराए नहीं होते जो दर्द दे कर जाते हैं
            अपने जिगर के टुकड़ों से भी दर्द मिल जाते हैं
            दर्द छिपा कर भी रिश्तों को  निभाना पड़ता है
                                                मुस्कराते हुए……..
दुश्मन से मिलते घाव अगर तो सहन भी हो जाते
पीठ पीछे से वार करें अपने तो सम्भल नहीं पाते
दुश्मन बनें जब अपने ज़ख्मों को छुपाना पड़ता है
                                        मुस्कराते हुए……..
        कई बार जख्म बिना हथियारों से दिए जाते हैं
        बिना गलती किये ही कसूरवार बन रह जाते हैं
        करें अपने गलतियां जब तो पछताना पड़ता है
  मुस्करा के कभी ना कभी  यूं दर्द छुपाना पड़ता है
  ना चाहते हुए भी किसी को पास बिठाना पड़ता है
बृज किशोर भाटिया, चंडीगढ़

LEAVE A REPLY

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.