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मजबूरी दरअसल लोगो के मन का भ्रम: श्री संत मुनि विनयकुमार जी आलोक

चंडीगढ़
30 अप्रैल 2017
दिव्या आज़ाद

मजबूरी वह मानसिक अवरोध है जिसे पुरूषार्थ से कतराने वाले नितांत अपनी सुविधा के मुताबिक मनचाहेमौके पर लगाकर अपनी पुरूषार्थहीनता से समझौता करके अपने दायित्व से मुक्त होने मे सफल हो जाते है। जो व्यक्ति मन से सफल होने का संकल्प ठान लेता है।  उसे असफल होने के लिए कोई परिस्थति मजबूर नही कर सकती।  देर सवेर उसे सफलता मिल ही जाती है। मनोवैज्ञानिको का कहना है कि  मजबूरी दरअसल लोगो के मन का भ्रम है। यह एक एेसी मानसिक स्थिति है जिसमे व्यक्ति घटनाओं और परिस्थतियों को इच्छानुकूल नही पाता और उन्हे बदलने मे अपने को पूरी तरह असमर्थ पाता है, वास्तविकता यह है कि मजबूरी उसी के लिए है, जो उसे स्वीकार करे,अन्यथा मजबूरी कोई चीज नही है। यदि आदिकाल से मानव मजबूरी समझकर परिस्थतियों से समझौता कर लेता तो आज कभी भी व्यक्ति को सुविधा की सारी वस्तुएं न मिलती। बिजली से लेकर एक सुई तक मानव की सोच और कडी मेहनत का नतीजा है।  जब रेल या गाडी का अविष्कार नही हुआ था तो व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने मे महीनो लग जाते थे। वही अब आधुनिक के माध्यम से महीनो की यात्रा कुछ घंटो मे हो जाती है। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने सैक्टर 18सी गोयल भवन में सभा को संबोधित करते हुए कहे। 

मनीषीश्रीसंत ने आगे कहा- लोग कामयाब न हो पाने पर, परीक्षा मे असफल हो जाने पर या रिश्तो के ताने बानों मे उलझने पर अपनी मजबूरी बयां करने लगते है। वे कहते है कि मेरे पास साधन नही थे,इसलिए  मैं असफल हो गया। यदि वास्तव मे साधनो के अभाव के कारण लोग असफल रहते थे तो आज कभी भी थॉमस अल्वा,एडीसन, मैरी क्यूरी, हेलेन केलर, स्वामी रामतीर्थ, लाल बहादुर शास्त्री, स्टीफन,आचार्य श्री भिक्षु सफलता के उस पायदान पर न पहुंच पाते जहां तक पहुंचने का सपना हर व्यक्ति का होता है।

मनीषीश्रीसंत ने अंत में फरमाया- एक युवक को लिखने का शौक था उसके लिखे पत्र को हर जगह अस्वीकार कर दिया जाता था युवक बिना निराशा के  नई ऊर्जा के साथ लिखने लगता। युवक ने देश, समाज के दुख दर्द की कथा सीधी सरल भाषा मे लिखी वह कहानी अपने देश के प्रमुख पत्र पेरी हेराल्ड मे प्रकाशित कराने के उददेश्य को लेकर वह युवक संपादक के पास गया तो संपादक ने उन्हे कहा कि तुम एक नए कहानीकार हो, लेकिन तुम्हारी कहानी हमारे पत्र मे छपने के लायक नही है तुम और पत्रो से संपर्क करो। युवक  अपमान होने के बाद भी  बोला सर मैं अपनी इस कृति को आपके पास छोडकर जा रहा हूं कि समय मिलने पर आप इसे अवश्यक देखे। कोई कमी होगी तो आप मुझे बताईयेगा। युवक चला गया।  एक दिन वही संपादक उस युवक  के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था। जब युवक ने संपादक को देखा तो दंग रह गया। युवक बोला सर आप मुझे सूचित कर देते मैं स्वयं ही आपके पास चला आता। तो सपंादक निसंकोच भाव से  बोला आना तो मुझे ही था फ्रांस के महान कहानीकार से मिलने  के लिए। युवक दंग रह गया। संपादक बोला आपकी कहानी का अवलोकन करने पर उसे अति उच्च कोटि का पाया गया और आपको महान कहानीकार की पदवी से विभूषित किया गया है। इसलिए  मै आपको बधाई देना आया हूं।  और पुरस्कार को युवक के हाथो मे रख दिया और कहा मैं आशा करता हूं पेरा हेराल्ड के लिए अपनी रचनाएं हमे भेजते रहेगे। यह युवक कहानी सम्रांट के रूप मे फ्रांस मे क्षितिज कर उभरा। एेसे प्रसंग दृढता से साबित करते है कि मजबूरी वास्तव मे काम से बचने का बहाना है।  यदि व्यक्ति  अपने विवेक के अनुकूल आचरण करे, हमेशा सकारात्मक भावनाओं से कार्य करे, आलस्य कोअपने पास न फटकने दे और किसी भी हालत मे मुस्कराहट का साथ न छोडे तो वह किसी भी परिस्थति मे मजबूरी  का अनुभव नही करेगा।  मजबूरी एक मानसिक अवस्था है।  मुस्कराहट, प्रसन्नता , सद्कर्म मे लगे रहना ही इससे दूर रहने का सीधा सरल उपाय है।