“चिमचे”

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 देखा है कितनों को बड़ी बड़ी बातें करते,
खुद अपने ही काम की तारीफ भी करते,
बहादुरी के अपने किस्सों को बयां करते,
देख चूहे को वो मेंढक की तरह उछलते।
ऐसे बहादुर लोग हर क्षेत्र में पाए जाते हैं,
अपने साथियों से भी नज़रें नहीं मिलाते हैं,
बॉस से खाएं डांट घर में आंखें दिखाते हैं,
मुहल्ले वालों से भी कम गुल मिल पाते हैं।
ऑफिस का काम ढंग से कर नहीं पाते,
ऑफिसरों के ये सब तलवे चाटने जाते,
घर  के काम छोड़  बॉस का राशन लाते,
अपने मोहतैतों पर ये खूब रौब जमाते।
वैसे ये सज धज संवर के घर से आते,
बॉस के आने से पहले दफ्तर में जाते,
बॉस आता देख सीट से खड़े हो जाते,
बॉस के जाने के बाद ही घर लौट पाते।
काम से नहीं चिमचे के नाम से जाने जाते,
अफसरों के आगे औरों की चुगली लगाते,
जो ना पसन्द हो इनको उसे डांट लगवाते,
कौन पूछे ऐसों को जब रिटायर्ड हो जाते।
-बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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