भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार यहां के प्रत्येक नागरिक को बोलने की स्वतंत्रता दी गयी है। देश का नागरिक किसी भी बात को बोलकर, लिख कर, प्रकाशित  कर या प्रगट कर के अभिव्यक्त कर सकता है और यह मौलिक अधिकार संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दिए गए हैं। लेकिन इस बात का यह अर्थ नहीं कि कोई भी नागरिक चाहे जो मर्ज़ी बोले उसको रोका नहीं जा सकता। बोलने वाले को अनुच्छेद 19 ( 2 ) के द्वारा ऐसी किसी भो बात को बोलने या अपने भाषणों में अभिव्यक्त करने के अधिकार  को सिमित किया जा सकता है जिससे देश की छवि धूलित होती हो या देश की आंतरिक सुरक्षा पर ख़तरा  मंडराए।
बोलने के अधिकार की स्वतंत्रता का कितना दुरुपयोग हो रहा है ये रोज़ देखने को मिलता है। बोलते वक्त कितने ऐसे लोग हैं जो अपनी ज़ुबां पर नियन्त्र नहीं रख पाते और कुछ का कुछ बोल देते हैं जिसके कारण वो दूसरों की बुराई तो करते हैं पर खुद अपनी छवि को भी बिगाड़ लेते हैं। राजनैतिक पार्टियां या अन्य नागरिक एक दूसरे के प्रति आरोप लगाते रहते हैं क्योंकि उन्हें अपने वीचारों को व्यक्त करने की स्वतन्त्रता है लेकिन ऐसे विचार जिससे राष्ट्र विद्रोह की भनक नज़र आए उन विचारों को चाहे राजनीतिक दल रखें ये कोई अन्य नागरिक रखे कतापी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
पिछले वर्ष कितनी ऐसी घटनाएं घटी हैं जिससे देश की अखण्ड सुरक्षा पर भारी चोट हुई है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में भारत विरोधी नारे लगाए गए , भारत तेरे टुकड़े होंगे, अफ़ज़ल गुरु अमर रहे आदि आदि ओर देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया। कितनी शर्म की बात है कि ऐसी घटनाओं का विरोध करने की बजाए कुछ राजनेता देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले लोगों के समर्थन में उतर कर विश्वविद्यालय में उनके साथ खड़े नजर आए। दूसरी ओर कश्मीर में आतंकवादियों ने ओर कश्मीरी गुमराह हुए लोगों ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का ना केवल अपमान ही किया अपितु पाकिस्तान के झंडे लहराए और भारत विरोदी नारे लगाए।  क्या इसे बोलने की स्वतंत्रता कहते हैं  ?
कुछ अलगाववादी नेताओं की छत्रछाओं में पल रहे कश्मीरी गुमराह लोग जिस देश का खाते हैं उसीके विरुद्ध ही ज़हर उगल रहे हैं। कश्मीर में पनपरहे आतंकववादिओं के इशारों पर चल रहे हैं। जब भारतीय सीमा सुरक्षा के जवान छुपे हुए आतंकववादिओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करें तो ये आतंकवादिओं को सुरक्षा प्रदान करते हैं। भारतीय सुरक्षा के जवानों पर पथराव करते हैं, आई एस आई के झंडे लहराते हैं, पाकिस्तान के पक्ष में ओर अपने ही देश के  विरूद्ध नारे बाज़ी करते हैं। कश्मीर के कुछ नेता इसको गलत कहने की जगह इन अलगाववादियों का साथ देते हैं और अपने भाषणों में ये कहते हैं कि कश्मीरी युवक आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं । क्या ये बोलने की स्वतंत्रता की धज्जियां नही उड़ा रहे और क्या ये देश विरोधी गतिविधियों में शामिल नही है ?
बोलने से पहले ये ज़रूर सोच लेना चाहिए कि मैं जो शब्द बोल रहा हूँ इससे किसी समुदाए के लोगों पर कोई उल्टा असर तो नहीं पड़ेगा, देश की प्रतिष्ठा पर आंच तो नहीं आएगी, किसी आतंकी गतिविदियों को बढ़ावा तो नहीं मिलेगा या कोई साम्प्रदायिक दंगा तो नही भड़केगा। आपके मुख से निकल हुआ एक शब्द भी कितना विस्फोटक बन सकता है शायद इसका सही मायने में अंदाज़ा लगाना बी नामुमकिन है। हमारे देश के राजनैतिक पार्टियों के कुछ नेता इस बात को लेकर गंबीर नज़र नहीं आते और वो सुर्ख़ियों में अपने आपको बनाए रखने के लिए उल्टे व अभद्र शब्दों का प्रयोग अपने भाषणों में करते नज़र आते हैं जिससे देश में साम्प्रदायिक दंगे भड़क सकते हैं, देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है, देश की सेना के मनोबल को चोट पहुंच सकती है ओर देश की अंदरूनी सुरक्षा व्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ सकता है। बोलने की स्वतन्त्रता का दुरुपयोग करने वालों पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है और ये कार्रवाई बगैर किसी पक्षपात के ( चाहे गलत बोलने वाला देश की शासित पार्टी से सम्बन्द्ध रखता हो या विरोधी पार्टी से सम्बन्द्ध रखता हो ) होनी चाहिए जिससे देश विरोधी गतिविदिओं को बढ़ावा ना मिल सके।
संविधान द्वारा मिले मौलिक अधिकार देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ता का अधिकार देते हैं जिसका हर देश के नागरिक को सम्मान रखना चाहिए। बोलने की स्वतंत्रता का ये मतलब नहीं कि आप जो मर्ज़ी बोलें इसलिए देश के हर  नागरिक का ये कर्तव्य बनता है कि वो इस बात पर विशेष ध्यान दें कि उसके द्वारा जिन शब्दों का प्रयोग किया जा रहा है उनसे राष्ट्रविद्रोह का आभास ना हो या देश की सुरक्षा पर कोई आंच ना आने पाए। बोले हुए शब्द राष्ट्र को जोड़ने का कार्य करें ना कि तोड़ने का।
कोई भी मौलिक अधिकार तभी तक सुरक्षित हैं जब तक उसका सही उपयोग किया जाए जिससे संविधान की गरिमा भी बनी रहे और देश पर या देश की आंतरिक सुरक्षा पर कोई भी आंच ना आये।
जय हिंद।
बृज किशोर भाटिया

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