“बारिश”

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बारिश के पड़ने से अब कैसी आग लग गई,
हसरतें जो दबी पड़ी थीं फिर से जग गयी।
सावन भी गर्मी से तपा रहा था बिन बरसात के,
बरसात होने से आज  थोड़ी राहत  मिल गयी।
छाते लिए हाथो में लोग अब नज़र आने लगे,
जो बिन छाते के थे, बारिश से भीगे जाने लगे।
बच्चों की किलकरियीं के मधुर स्वर आने लगे,
बारिश से इकठ्ठे पानी मे वो छलांगे लगाने लगे।
गरमी से परेशान परिंदे पर फड़फड़ाने लगे,
गड्ढों में भरे बारिश के पानी में वो नहाने लगे।
हलवाई भी बैठे थे कबसे बारिश की इंतज़ार में,
बारिश के पड़ते ही समोसे जलेबियाँ बनाने लगे।
घर लक्ष्मी की रसोईघर से महक सी आने लगी,
खीर पूड़े बनने की घर में सुगंध फैल जाने लगी।
वृक्षों के नीचे बैठे नाई, मोची कर काम बंद जाने लगे,
वृक्षों नीचे बैठे अब भुट्टा भूनने वाले नज़र आने लगे।
 
वर्षा के हुए इकठ्ठे पानी से शहर में जाम लगने लगे,
नगर पालिका के कामों के पोल सब खुलने लगे।
 
दिन में पंछियों का शोर रात में मेंढक टरटराने लगे,
कच्चे मकान छत से बारिश की बूदें टपटपाने लगे।
 
गले खुश्क हो रहे थे लोगों के बारिश ने तर कर दिए,
नीरस जीवन में बारिश ने खुशियों के रङ्ग भर दिए।
बृज किशोर भाटिया,चंडीगढ़

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