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“आतंकवाद खत्म हो जाए”

आंधी के आने से आम का पेड़ गिर गया,
सड़क पर यकदम यातायात रुक गया।
आम टूट कर डालियों से सब बिखर गए,
उठा कर आम कितने लोग निकल गए।
        पेड़ को हटाने वालों की भीड़ बढ़ने लगी,
        आरी/ कुल्हाड़ी से शाखाएं  कटने लगीं।
        कटी शाखाएं/तना सड़क से तो उठ गए,
        खुला यातायात,बागबां के नसीब लुट गए।
71 साल पहले देश को आज़ादी तो मिल गई,
नरसंहार हुआ, कितनो की दुनियां उजड़ गई।
जलती अग्नि की लपटों में जिसका जन्म हुआ,
बच्चा लिए,सब कुछ छोड़,परिवार बेघर हुआ।
           घर छोड़ कर लाहौर से जान बचा कर भागे,
           बच्चा लिए, खाली हाथ चढ़ गए ट्रैन में जाके,
           भरा पड़ा घर छूटा, छरेटा कैम्प में शरण पाएं,
           जो परिवार सम्पन थे वो शरणार्थी कहलाएं।
वक्त के साथ सब बदला, हालात बदलते जाएं,
जन्मभूमी खोने की टीस दिल से निकल ना पाए।
दुआ है, देश में प्रेम रहे आपसी शत्रुता मिट जाए,
फिर न बेघर हो कोई, आतंकवाद खत्म  हो जाए।
-बृज किशोरे भाटिया, चंडीगढ़